Book Title: Chotrish Atishay Stavan Author(s): Mahabodhivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ 52 अनुसन्धान 35 पत्र पुष्प पल्लव करीय अतिशोभे जेह, श्रीजिनवर बइसी रहे तिहां दीसे तेह..... // 3 // आठमे वर समभूमिभाग रमणिक सुहावइ, नवमे कंटक तणा अणी उपराठा थावइ; रितु विपरीति सवे हवे ओ सखकारी दसमे. शितल वायु सुगंध फरस तिहां एकारशमे..... // 4|| गंधोदकघन बारसमे रजरेणु समावे, तेरसमे वरकुसुमवरण पांचे म[न] भावे; बिंट अठाइ सुरभिगंध सवि जाणु प्रमाण, तेह तणो उपचार करे तिहां किण(कने) सुरठाण..... ||5|| सद्द फरस-रस-रूप-गंध अनिष्ट अकांत, चौदमे अतिशय उपसमे ओ वरते अविभांत, सद्द फरस-रस-रूप-गंध अतिकंत उदार; प्रगट थाय जिणवर कहे अ पनरमे सार..... // 6 // जन्म थकी धुरि चार होवे पन्नर कर्म टाली, देवतणा कृत पन्नर शुद्ध तप-संजम-पाली; ओ अतिशय चोत्रीश सवे जिननायक केरा; भणता-गुणता सयल रिधि सुख लहे भलेरा..... |7|| कळश श्रीजीवरिषिगणि हस्तदीक्षित सकल बुद्धिनिधान मे, श्रीमल्लगणिवर गुणे अधिका सुमति गुपति परधान ओ..... // 1 // तस चरणसेवक कान्हमुनि सुदि श्रावण पुनिम सार अ, संवत सोलहबावने शोभतो दिन गुरुवार अ..... // 2 // जिनराजना अतिशय थुण्या गढ जेसलमेर मजार ओ भणो भवियण हरखशुं सवि संघ जयजयकार अ..... // 3 // // चोत्रीश अतिशयं स्तवनम् // . C/o. किरीट ग्राफिक्स रतन पोळ, अमदावाद-३८०००१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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