Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 14
________________ जीव और जगत्, आत्मा और परमात्मा, व्यक्ति और समाज आदि के शाश्वत् तथ्यपरक सत्य का दिग्दर्शन कराना ही दर्शन का सही अर्थ है । सामान्य तौर पर लोग दर्शन का स्थूल अर्थ आत्मा-परमात्मा के रहस्योद्घाटन भर मान लेते हैं, किन्तु यह दर्शन का सर्वांगपूर्ण अर्थ नहीं है। दर्शन का अर्थ है— दृष्टि, और दृष्टि जीवन के बीच से जीवन का दर्शन करती है । यह अन्य बात है कि वह दृष्टि मात्र भौतिक मांसल आयामों में ही उलझ कर न रह जाए, बल्कि जीवन के वास्तविक उद्देश्य का उद्घाटन करे । 'चिन्तन की मनोभूमि' में श्रद्धेय कविश्रीजी ने दर्शन के विशाल धरातल पर एक विस्तीर्ण मनोभूमि पर तत्त्व - चिन्तन किया है। मनोभूमि में चिन्तन का विषय जीव भी रहा है, जगत् भी रहा है, आत्मा भी रहा है, परमात्मा भी रहा है, किन्तु सबसे बड़ी बात यह कि धर्म एवं अध्यात्म की मनोभूमि से जीवन का सर्वांगीण सत्य इसमें उद्घाटित हुआ है । सर्वधर्म समन्वय, शिक्षा एवं विद्यार्थी जीवन, नारी जीवन का अस्तित्व, वसुधैव कुटुम्बकम्, संस्कृति और सभ्यता तथा विश्व-कल्याण का चिरंतन पथ, सेवा का पथ आदि कतिपय ऐसे जाज्वल्यमान विषय - बिन्दु हैं, जिन पर कविश्रीजी ने निष्पक्ष चिन्तन करते हुए बड़े ही जीवन-व्यवहार्य प्रणाली से समाधान प्रस्तुत किया है। 'चिन्तन की मनोभूमि' कविश्रीजी के समग्र चिन्तन का प्रतीक है — ऐसा कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। यह ग्रन्थ जैन धर्म-समाज में ही नहीं, बल्कि समस्त मत-सम्प्रदायों में समान रूप से आदरणीय सिद्ध होगा- ऐसा निष्पक्ष चिन्तन इसमें प्रस्तुत किया गया है। मुझे विश्वास है कि श्रद्धेय कविश्रीजी जितने बहुज्ञ - विश्रुत चिन्तक हैं, और विद्वत् मण्डली से लेकर जनसामान्य के बीच तक आपका जितना समादर-सम्मान है, तद्नुसार यह पुस्तक आपके सम्मान में चार चाँद लगाने वाली सिद्ध होगी । यह सन्मति ज्ञानपीठ के लिए ही नहीं प्रत्युत समग्र साहित्यवाङ्गमय के लिए गौरवशालिनी पुस्तक सिद्ध होगी। आशा है, श्रद्धालु मनीषी एवं विचारक इस पुस्तक का अवलोकन कर हमें अपने बहुमूल्य विचार प्रदान करेंगे तथा इस दिशा में समुचित सुझाव एवं निर्देश देकर हमें बल प्रदान करेंगे। १९९५, प्रथम जून Jain Education International For Private & Personal Use Only मन्त्री, सन्मति ज्ञानपीठ आगरा - २ www.jainelibrary.org

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