Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 13
________________ दलसुख मालवणिया की विस्तृत एवं समीक्षात्मक भूमिका हिन्दी में लिखी गई है, जिसके आधार पर समग्र ग्रन्थ 'निशीथ चूर्णि' भाष्य का रसास्वादन पाठक आसानी से कर सकते हैं। आगम वाङ्गमय के क्षेत्र में आपकी अन्य दो विशिष्ट कृतियाँ हैं-सभाष्य सामयिक सूत्र और सभाष्य श्रमण-सूत्र । काव्य के क्षेत्र में आपकी विशिष्ट कृति है-सत्य-हरिश्चन्द्र, जिसमें भारतीय-संस्कृति एवं समाज का सुन्दर चित्रण किया गया है। - कविश्रीजी की समग्र साहित्य-साधना का परिचय एक लेख में देना कथमपि सम्भव नहीं है। मैं यहाँ पर उनके साहित्य पर एक रूपरेखा ही प्रस्तुत कर सकता हूँ। कविजी के साहित्य का विभाजन तीन प्रकार से किया जा सकता है-१. विविध विषयों के आधार पर विभाजन, २. नाना विधाओं के अनुसार विभाजन और ३. शैली के अनुसार विभाजन । मुख्य रूप में कविजी ने धर्म, दर्शन, तत्त्व, आचार, संस्कृति और समाज सम्बन्धी विषयों पर लिखा है। इस विषय के साहित्य में 'चिन्तन की मनोभूमि, समाज और संस्कृति' और 'अध्यात्म-प्रवचन' मुख्य कृतियाँ हैं। धर्म और नीति के सम्बन्ध में भी आपने काफी लिखा है। इस प्रकार के साहित्य में उनकी मुख्य कृतियाँ हैं-अहिंसा-दर्शन से लेकर अपरिग्रह-दर्शन तक तथा पंचशील आदि। उनके पद्यात्मक साहित्य की मुख्य कृतियाँ हैंखण्ड काव्य, श्रद्धाञ्जलि और महाकाव्य-धर्मवीर सुदर्शन तथा सत्य हरिश्चन्द्र तथा साथ ही समय-समय पर आपने आध्यात्मिक और धार्मिक गीतों की रचना भी की है। इस विषय की मुख्य कृतियाँ हैं-अमर पद्य मुक्तावली, अमर पुष्पाञ्जलि, अमर-कुसुमाञ्जलि तथा अमर-गीताञ्जलि आदि। स्वतन्त्र रूप में आपने मुक्तक काव्य भी लिखे हैं-जिनका प्रकाशन श्री अमर भारती के मुख्य पृष्ठ पर तथा सन्मति ज्ञानपीठ से हो चुका है। इस प्रकार यह उनका गद्य-पद्यात्मक साहित्य-सृजन है, जिसका चित्रण यहाँ संक्षेप में किया गया है। कविश्रीजी का प्रवचन साहित्य भी काफी व्यापक एवं समृद्ध है। इस विषय की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं-अहिंसा-तत्त्व-दर्शन, समाज और संस्कृति, पर्युषण-प्रवचन, अध्यात्मप्रवचन, जीवन-दर्शन, अमर-आलोक, अमर-भारती और पंचशील आदि। उनके निबन्धसाहित्य में सभी प्रकार की शैलियों के निबन्ध हैं। निबन्ध-साहित्य की कृतियों में मुख्य कृतियाँ हैं-जैनत्व की झाँकी, महावीर, सिद्धान्त और उपदेश, आदर्श-कन्या आदि। उनका समीक्षात्मक शास्त्रीय निबन्ध-साहित्य भी काफी मात्रा में एवं पर्याप्त रूप में समृद्ध है। इस प्रकार कविजी की साहित्य-साधना बहुविध और बहुआयामी रही है। इसी आदर भावना के साथ मैं परम ज्योतिलीन मुनिश्रीजी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ उन्हें बारम्बार नमन करता हूँ। • शास्त्री पं. विजयमुनि साहित्य-रत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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