Book Title: Chintan ke Kshitij Par
Author(s): Buddhmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 2
________________ मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है। जागृत अवस्था में तो वह चिन्तन करता ही है, स्वप्नावस्था में भी करता है। बुद्धि उसके चिन्तन को सौष्ठव प्रदान करती है, विवेक गहराई, स्मृति स्थायित्व तो कल्पना नव-नव उन्मेष । इन सभी विशेषताओं से संपन्न मनुष्य जब चिन्तन के क्षेत्र को अपने आसपास तफ ही सीमित रखता है तब 7वह अपने एवं अपने से संबंधित व्यक्तियों की समस्याओं तक ही सीमित रहता है, परन्तु जब उसके चिन्तन का क्षेत्र क्षितिज की दूरियों तक विस्तार पाता है तो उसके लिए हर विषय बहु-आयामी होकर बहुत-बहुत विस्तीर्ण हो जाता है। उस स्थिति में उसके लिए बाह्य समस्याओं के समाधान की खोज गौण तथा आभ्यंतर की मुख्य हो जाती है। अध्यात्म, धर्म, संस्कृति और समाजगत समस्याओं के समाधान चिन्तन के इसी बिन्दु पर अन्विष्य होते हैं। प्रस्तुत पुस्तक का नाम उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में रखा गया है-चिन्तन के क्षितिज पर। जिज्ञासुजन चिन्तन के क्षितिज पर उतर आने वाली समस्याओं का समाधान प्राप्त करेंगे, ऐसा विश्वास है। Jain Education Internasional el Private S ersonal Use Only www.jainelibrary.org

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