Book Title: Chikitsaya Jyotish ke Kshetra me jain Sahitya ka Yogadan
Author(s): Gyanchandra Jain
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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________________ चिकित्सीय ज्योतिष के क्षेत्र में जैन साहित्य का योगदान अनादिकाल से सृष्टिमें आविर्भूत प्राणिमात्रके हृदयमें सदैवसे यह अभिलाषा उत्कृष्ट रूपमें विद्यमान रही है कि वह सदैव स्वस्थ रहता हुआ सुखपूर्वक जीवन यापन करते हुए सुखसमृद्धिके शिखरको प्राप्त करके अपने पुनर्जन्मको भी सुखमय बना सके । प्राणिमात्रकी इस इच्छाको आचार्योंने निम्न डॉ० ज्ञानचन्द्र जैन आयुर्वेदिक महाविद्यालय, लखनऊ, ( उ० प्र०) जे त्रिभुवनमें जीव अनन्ता, सुख चाहें, दुःख तो भयवन्त । ताते दुःखहारी सुखकार, कहें सीख गुरु करुणाधार ॥ रूपमें व्यक्त करते हुए सुखमय जीवन यापन करनेका उपाय भी बतलाया है । प्राणिमात्रको इस जीवनमें पारलौकिक सुखधन हेतु, चतुर्वर्गकी प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ करना चाहिये । चतुर्वर्ग में धर्म, अर्थ, काम एवं मुक्तिका समावेश किया गया है । इन चारोंकी प्राप्ति के लिए आरोग्य प्राप्ति मूलरूपसे आवश्यक है क्योंकि सुख रूप अभिलाषा आरोग्य में ही निहित है और जिस दुःखरूपी बाधासे प्राणिमात्र भयभीत है, वही आरोग्य या विकार है : सुखसंज्ञकमारोग्यं विकारो दुःखमेव च । इस प्रकार सुखी जीवनके लिए आरोग्य मूलभूत तत्त्व है । परन्तु आरोग्य प्राप्तिके मार्ग में रोग बाधा होते हैं । इससे श्रेष्ठ जीवन प्राप्त नहीं हो पाता है । यथा— Jain Education International धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं भूलमुत्तमम् I रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च ।। अतएव आरोग्य मार्गके बाधक रोगोंकी दूर करनेके लिए ही 'कित् रोगापनयने' के अनुसार चिकित्सा कार्य - का प्रावधान किया गया है । प्राणिमात्रकी मूलभूत इच्छाके अनुरूप चिकित्सा कार्यके भी दो प्रयोजन हैंस्वस्थके स्वास्थ्यकी रक्षा करना (स्वस्थ्यस्य स्वारथ्यरक्षणम् ) और दूसरा, रोगीका रोगहरण करना (आर्तस्य रोगहरणं) । इसी पुनीत उद्देश्यको दृष्टिगत रखकर आचार्योंने चिकित्सा कार्यको सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादित किया है । इस रोगोन्मूलक पावन कर्तव्य हेतु कालक्रमके अनुसार आयुर्वेद, ऐलोपैथिक, यूनानी होम्योपैथिक, सिद्ध आदि चिकित्साकी अनेकों पद्धतियोंका आविष्कार एवं विकास दिन-प्रतिदिन होता जा रहा है । इसके प्रतिफल स्वरूप चिकित्साविज्ञानके आचार्योंने मलेरिया जैसी जनपदोध्वंसकारक व्यांधियोंके उन्मूलनका दावा किया है । वे यक्ष्मा, कुष्ठ जैसी महाव्याधियोंके नियन्त्रणकी घोषणा भी कर रहे हैं । इस प्रकार चिकित्सा विज्ञान नित्य नवीन अन्वेषणों द्वारा रोग संतप्त मानवको आरोग्य प्रदान करनेकी दिशामें अग्रसर हो रहा - ४१४ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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