Book Title: Chikitsa ke Prati Samaj Sanskrutik Upagam
Author(s): Ramnarayan, Ranjankumar
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 3
________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ होता रहता है, तभी तक उसमें मानसिक विकृति उत्पन्न होते देखी जाती है। इसके विपरीत यदि एक व्यक्ति अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुकूल व अनुरूप ही निरंतर व्यवहार करने का अभ्यास करता रहता है, तब इससे न केवल उसका इष्टतम विकास ही संभव होता है, बल्कि वह विकृतिजन्य पर्यावरणगत दुष्प्रभावों से भी एक प्रकार से मुक्त रहता है। मानवतावादी तथा अस्तिपरकवादी विचारधाराओं के अनुरूप यह दार्शनिक विचार पद्धति भी, मानव के मानसिक स्वास्थ्य व व्यक्तित्व विकास के लिए उसकी क्षमताओं व जन्मजात विभवों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति व विकास पर ही बल देती है। महर्षि पतञ्जलि ने इस स्थिति की प्राप्ति को व्यवहारिकतः कठिन ही बताया है, परंतु साथ ही साथ उनका यह भी कहना है कि व्यक्ति इस चिरमय सुखद स्थिति को वर्षों से नियंत्रण व अभ्यास (अथवा योग) से अवश्य प्राप्त कर सकता है। इस प्रक्रम में उसे अपने आपको बाह्य पर्यावरण के दुष्प्रभावों से अधिकांशतः प्रभावित होने से बचाव करने का सतत् अभ्यास करना होता है व अपने संवेगों तथा विचारों की प्रक्रियाओं पर भी आवश्यक नियंत्रण स्थापित करना सीखना होता है। पतञ्जलि योग - चिकित्सा के अंतर्गत वस्तुतः व्यक्ति को यम, नियम, संयम, प्राणायाम, अहिंसा, शुद्धता, संतोष, स्वाध्याय, ध्यान, आसन, प्रत्याहार व समाधि आदि का अटूट अभ्यास करना होता है। ऐसे मानसिक गुणों के अभ्यास द्वारा व्यक्ति न केवल विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को ही आवश्यक रूप से नियमित कर सकता है, बल्कि वह इनसे अनेक मनोकायिक विकारों पर नियंत्रण भी स्थापित कर सकता है। कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों जैसे Vahia 1069 व Naug 1975 के आधार पर योग - चिकित्सा पद्धति से दुश्चिन्ताग्रस्त हिस्टीरिया व मनोकायिक विकारों से पीड़ित तथा अवसादी जैसी स्थिति से पीड़ित व्यक्तियों को विशेष रूप से लाभ पहुँचते देखा गया है। इस प्रकार योग - चिकित्सा पद्धति का व्यापक रूप से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यधिक लाभप्रद प्रभाव देखने में आया है। इस कारण इसका उपयोग भारत तथा विदेशों में भी व्यापक रूप से अनेक विद्यार्थियों, शिक्षकों व अन्य सामान्य व्यक्तियों में निरंतर बढ़ते देखा जा रहा है। ऐन ট Jain Education International आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म (iii) मस्तिष्क - विद्युत् लहर चिकित्सा (Brain-Wave Therapy) विद्युत्लहरों का प्रत्यक्षतः संबंध व्यक्ति के रक्त चाप (Blood Pressure) तथा स्वायत्त से तंत्रिकातंत्र के कार्यों से रहता है तथा विद्युत्-लहरों के विभिन्न रूपों. (a, b, y, q) को उनकी विभिन्न गतियों से पहचाना जा सकता है। इसके अतिरिक्त, मस्तिष्क की असामान्य स्थिति में विद्युत लहरों का स्वरूप उसकी सामान्य स्थिति में भी सफलतापूर्वक पहचाना जा सकता है। इसके लिए संबंधित व्यक्ति को जीव- प्रतिपुष्टि प्रशिक्षण (Bio Feedback training-B.F.T.) की आवश्यकता होती है। इसके पश्चात् संबंधित विद्युत् उपकरण की सहायता से जीव प्रतिपुष्टि सूचना के आधार पर एक व्यक्ति अपने रक्तचाप व स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के कार्यों के सामान्य तथा असामान्य रूपों को समझकर उनमें समय-समय पर आवश्यक संशोधन व सुधार भी कर सकता है। इस प्रकार Brain- Wave की लहरों को नियमित व संतुलित किया जा सकता है। यहाँ इस संबंध में Bio-Feed back Traing (B.F.T.) को Electronic Yoga भी कहते हैं, क्योंकि इसके माध्यम से अनेक मनोकायिक विकारों व दुश्चिन्ता के तनावों को कम किया जा सकता है। (२) जल- चिकित्सा (Hydro-Therapy) - जिस रोगी में दीर्घकालिक रूप से उत्तेजित बने रहने की रोगात्मक स्थिति बनी ही रहती है, या फिर जिस रोगी में निरंतर शक्तिहीनता व भावशून्यता तथा ध्यान रिक्तता की घोर निराशाजनक स्थिति बनी ही रहती है, उसे जल चिकित्सा की अनुप्रयुक्ति से अपने रोगजन्य व कुण्ठाकारक लक्षणों से अपेक्षाकृत शीघ्र भारमुक्त होते देखा जाता है। या यों कहा जा सकता है कि साधारणतः स्नान का स्वस्थ व्यक्ति के मन पर भी सुखद प्रभाव पड़ते देखा जाता है, परंतु जब एक रोगी का मन अति अशान्त व उदास होता है, उस स्थिति में बहते पानी में तैरने व नहाने से मन पर और भी अधिक प्रशान्तक व आनन्ददायक प्रभाव देखने में है। । कुछ समय के लिए (लगभग एक घंटे) ठंडे जल से भरे हुए पानी के टब में स्वेच्छा से नहाते रहने का भी मानसिक रोगी पर स्वास्थ्यवर्धक व शांतिदायक प्रभाव रहता है। कभीकभी एक अशान्त रोगी के शरीर को ठंडे पानी के बड़े तौलिये में कुछ समय के लिए लपेट देने का भी गहरा संतोषजनक आता মটট{ ३० ট For Private & Personal Use Only ये ট ট www.jainelibrary.org

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