Book Title: Ched Suttani Aayar Dasa
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: Aagam Anyoug Prakashan

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Page 14
________________ ( १० ) अनुशीलन से निशीथ-चूर्णिगत धर्म, दर्शन एवं संस्कृति के सम्बन्ध में नूतन तथ्य सामने आये हैं, तथा इतिहास सम्बन्धी अनेक बातें प्रकाश में आई हैं । निशीथ चूणि एक महान् आकर-ग्रन्थ है। छेद-सूत्रों का महत्त्व छेद-सूत्रों में जैन श्रमणों के आचार से संबद्ध प्रत्येक विषय का विस्तार के साथ वर्णन उपलब्ध होता है। आचार सम्बन्धी छेद सूत्रगत उस विवेचन को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है---उत्सर्ग-मार्ग, ‘अपवाद-मार्ग, दोष-सेवन तथा प्रायश्चित्त। किसी भी विषय के सामान्य विधान को उत्सर्ग कहा जाता है। परिस्थिति विशेष में तथा अवस्था विशेष में किसी विशेष विधान को अपवाद कहा जाता है। दोष का अर्थ है-उत्सर्ग और अपवाद का भंग । खण्डित व्रत की शुद्धि के लिए समुचित दण्ड ग्रहण किया जाता है, उसे प्रायश्चित्त कहा गया है। किसी भी विधान के परिपालन के लिए चार बातें आवश्यक होती हैं। सर्वप्रथम किसी सामान्य नियम की संरचना की जाती है। उसके बाद देश, काल, पालन करने की शक्ति तथा उपयोगिता को : संलक्ष में रखकर उसमें थोड़ी-बहुत छूट दी जाती है। यदि इस प्रकार की छूट न दी जाए तो नियम का परिपालन करना प्रायः असम्भव हो जाता है। परिस्थिति विशेष के लिए अपवाद-व्यवस्था भी अनिवार्य है। एक मात्र विभिन्न प्रकार के नियमों के निर्माण से कोई विधान पूर्ण नहीं हो जाता। उसके समुचित पालन के लिए तथाभूत दोषों की सम्भावना का विचार भी आवश्यक है। यदि दोषों की सत्ता स्वीकार की जाती है, तो उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त भी आवश्यक है। आचार-सम्बन्धी नियम-उपनियमों का, जिस प्रकार का विवेचन जैन-परम्परा के छेद-सूत्र-साहित्य में उपलब्ध होता है, उससे मिलता-जुलता बौद्ध भिक्षुओं के आचार नियमों का विवेचन बौद्ध-परम्परा के पालि ग्रन्थ विनय-पिटक में भी उपलब्ध होता है। भारतीय-साहित्य के मूर्धन्य समीक्षकों का यह कथन सत्य है, कि जैन-परम्परा के छेद-सूत्रों के नियमों की विनय-पिटक के नियमों से तुलना की जा सकती है। तथा वैदिक-परम्परा के कल्प-सूत्र, श्रोत सूत्र और गृह सूत्रों के आचार-नियमों की समीक्षात्मक तुलना छेद-सूत्रों के नियमों से की जा सकती है। छेद सूत्रों की उपयोगिता ___ इसमें जरा भी सन्देह नहीं है, कि छेद-सूत्रों का विषय पर्याप्त गहन एवं गम्भीर है। यदि कोई व्यक्ति उसे समग्र रूप से समझे बिना ही उसकी दोचार बातों को लेकर ही उसकी निन्दा या दुरालोचना करने बैठ जाए, तो यह

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