Book Title: Chand Drushti se Dashashrut Skandha Niryukti Path Nirdharan
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ २७४ क्र. नं. ञ २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. गाथा ९२ ९८ १०१ १०४ १०८ ११३ १३० Jain Education International चरण पू. उ. उ. उ. उ पू. उ. उक्त विवरण से स्पष्ट है परिप्रेक्ष्य में व्याकरण की दृष्टि से ९८, १०४ और १३० । अशोक कुमार सिंह संशोधन दुरुत्तग्ग > दुरुतग्गो खिसणा च खिसपाहिं अवलेहणीया किमिराग कद्दम कुसुंभय हलिया > अवलेहणि किमि कद्दम कुसुंभरागे हलिद्दा य अणुवतीह> अणुवत्तीहि पुच्छति य पडिक्रमणे पुव्वभासा चउत्थम्मि पुच्छा तिपडिक्कमणे, पुष्यमासा चउत्थेपि मंगलं > तु मंगलं मणुस्स मणुस्से आधारग्रन्थ नि.भा. नि.भा. नि.भा. नि. भा. Nirgrantha गाथा देही चूर्णा नि.भा. नि.भा. द. चू. कि कुछ गाथाओं को, उनमें प्राप्त शब्द विशेष को समानान्तर गाथाओं के संशोधित कर शुद्ध कर सकते हैं जैसे गाथा सं. १२, ४७, ६३, ८३, ९२, धात्री धात्री For Private & Personal Use Only गौरी गाथा सं. ५९, ६९, ७८, ८०, ८९, ११३ और १४१ समानान्तर गाथाओं के पाठों के आलोक में और साथ ही साथ प्राकृत भाषा के व्याकरणानुसार वर्तनी संशोधित कर देने पर छन्द की दृष्टि से शुद्ध हो जाती है। छाया देही गाथा सं. ६३ और ६९ समानान्तर गाथाओं के अनुरूप एक या दो शब्दों का स्थानापन्न समाविष्ट कर देने से छन्द की दृष्टि से निर्दोष हो जाती हैं । गाथा सं. ५४ और ५८ में क्रमशः 'काले' और 'मासे' को छन्द-शुद्धि की दृष्टि से जोड़ना आवश्यक है। उक्त दोनों शब्द इन गाथाओं को सभी समानान्तर पाठों में उपलब्ध है। गाथा सं. १० और ६६ में 'ण' की वृद्धि आवश्यक है। इन शब्दों को समाविष्ट करना विषय प्रतिपादन को युक्तिसङ्गत बनाने की दृष्टि से भी आवश्यक है। सम्भव है उक्त गाथाओं में 'काले', 'मासे' और 'ण' का अभाव मुद्रण या पाण्डुलिपि लेखक की भूल हो सकती है गाथा नं. १०१ और १०८ समानान्तर गाथाओं के आलोक में सम्पूर्ण उत्तरार्द्ध को बदलने पर छन्द की दृष्टि से शुद्ध होती हैं । इस नियुक्ति की गाथाओं से, गाथाओं के समानान्तर पाठालोचन के क्रम में कुछ अन्य उल्लेखनीय तथ्य भी हमारे समक्ष आते है। जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है गाथा सं. ८२ के चारों चरण, नि. भा. की दो गाथाओं ३१६९ और ३१७० में प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार गाथा सं. ८६ में प्राप्त 'संविग्ग' और 'निद्दओ भविस्सर' के स्थान पर नि. भा. की गाथा ३१७४ में क्रमश: 'सचित्त' और 'होहिंतिणिधम्मो' प्राप्त होता है। इन दोनों गाथाओं में शब्दों का अन्तर www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11