Book Title: Chalte Phirte Siddho se Guru
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 92
________________ ૨૮૨ चलते फिरते सिद्धों से गुरु से भिन्न होने के कारण निश्चयनय से लिंग मोक्ष का कारण नहीं है।१०' हे मुने! तू लोक का रंजन करनेवाला बाह्यव्रत का वेष मत धारण कर! मोक्ष का मार्ग भाव ही से है, इसलिए तू भाव ही को परमार्थभूत जानकर अंगीकार करना । केवल द्रव्यमात्र से क्या साध्य है?१८' __जहाँ न्यूनतम तीन कषाय चौकड़ी के अभावरूप भावलिंग होता है, वहाँ तो शरीर की नग्नदशा, बाह्य मूलगुणादि का पालन इत्यादिरूप द्रव्यलिंग होता ही है; परन्तु जहाँ द्रव्यलिंग होता है, वहाँ भावलिंग भी हो ही - ऐसा नियम नहीं है। यहाँ मुनिव्रत से आशय भावलिंग रहित मात्र बाह्य द्रव्यलिंग समझना चाहिए; क्योंकि भावलिंग सहित द्रव्यलिंग का धारण अनन्तबार नहीं हो सकता; इसका कारण यह है कि जिसे भावलिंगपूर्वक द्रव्यलिंग होता है, उस जीव का संसार अति अल्प होता है। भावलिंग की महिमा वाचक आगम प्रमाण - 'बहिरंग द्रव्यलिंग के होने पर भावलिंग होता भी है और नहीं भी होता, कोई नियम नहीं है, परन्तु अभ्यन्तर भावलिंग के होने पर सर्वसंग के त्यागरूप बहिरंग द्रव्यलिंग अवश्य होता ही है ।१९' 'मुनि लिंग धारै बिना तो मोक्ष न होय; परन्तु मुनि लिंग धारै मोक्ष होय भी अर नाहीं भी होय ।२० इस कथन से स्पष्ट है कि द्रव्यलिंग का भी अपना महत्त्व है। बिना द्रव्यलिंग के किसी जीव को भावलिंग प्रगट हो जाए - ऐसा कदापि सम्भव नहीं है; किन्तु द्रव्यलिंग से भावलिंग हो ही जाएगा - यह बात भी नहीं है। दूसरी बात यह भी है तीर्थंकर भी जब तक गृहस्थ दशा में रहते हैं, तब तक मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते है। मुक्ति के लिए तो एकमात्र निर्ग्रन्थ दिगम्बर द्रव्यलिंग ही स्वीकार है। बात इतनी-सी है कि 'द्रव्यलिंग शरीराश्रित होने से उसके प्रति ममत्व त्यागने योग्य है।' इस बात का छल ग्रहण करके, बाह्य द्रव्यलिंग का ही निषेध करके किसी भी बाह्य मुनिराज के भेद-प्रभेद १८३ लिंग से मोक्ष प्राप्ति माननेवालों को आचार्य कुन्दकुन्द के निम्न कथनों पर ध्यान देना चाहिए - 'जिनशासन में इस प्रकार कहा है कि 'वस्त्र को धारण करनेवाला सीझता नहीं है, मोक्ष नहीं पाता है। यदि तीर्थंकर भी हो तो जब तक गृहस्थ में रहे, तब तक मोक्ष नहीं पाता है; दीक्षा लेकर दिगम्बररूप धारण करे, तब मोक्ष पावे; क्योंकि नग्नपना ही मोक्षमार्ग है, शेष सब लिंग उन्मार्ग हैं।२९१ 'जो निश्चेत (वस्त्ररहित) दिगम्बर मुद्रा और पाणिपात्र में खड़े-खड़े आहार करना, आदि अद्वितीय मोक्षमार्ग का उपदेश तीर्थंकर परमदेव ने दिया है, इसके सिवाय अन्य रीति सब अमार्ग है ।२२' हे शिष्य ! द्रव्यलिंग निषिद्ध ही है - ऐसा तू मत जान! क्योंकि यहाँ तो भावलिंग से रहित यतियों को द्रव्यलिंग निषिद्ध कहा गया है। वस्तुतः भावलिंग रहित द्रव्यलिंग निषिद्ध है। ___ दीक्षा के बाद दो घड़ीकाल में ही भरत चक्रवर्ती ने केवलज्ञान प्राप्त किया है, उन्होंने भी निर्ग्रन्थरूप से ही केवलज्ञान प्राप्त किया है, परन्तु समय बहुत कम होने के कारण उनका परिग्रह त्याग लोग जानते नहीं हैं।२३ भरतेश्वर ने पहले जिनदीक्षा धारण की, सिर के केश लुंचन किये, हिंसादि पापों की निवृत्तिरूप पंच महाव्रत आदरे। फिर अन्तर्मुहूर्त में निज शुद्धात्मा के ध्यान में ठहरकर निर्विकल्प हुए। तब अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त किया, परन्तु इस सबका समय कम है, इसलिए महाव्रत की प्रसिद्धि नहीं हुई।२४ पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक में मुक्ति के कारणों की चर्चा में कहा है - 'मुनिलिंग धारण किये बिना तो किसी को मोक्ष नहीं होता, परन्तु मुनिलिंग धारण करने पर मोक्ष होता भी है और नहीं भी होता।'२५ गुणस्थानानुसार छठवें से आगे-आगे के गुणस्थानों में बढ़ती हुई शुद्धता को भावलिंग के भेद कह सकते हैं। लेकिन छठवें से चौदहवें गुणस्थान तक बाह्य नग्न दिगम्बर द्रव्यलिंग तो एक ही प्रकार का होता है। 92

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