Book Title: Chaityavandan Vidhi
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf

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Page 5
________________ ३१ 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कह कर स्तवन बोलें. सामान्य जिन स्तवन (योग मुद्रा में) जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं हृदय कमल में ध्यान धरत हुं, शिर तुज आण वहुं... जिन १ तुम सम खोळ्यो देव खलक में, पेख्यो नहि कबहुं.... जिन २ तेरे गुण की जपुं जप माला, अहोनिश पाप दहुं... जिन ३ मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं.... जिन ४ कहे जस विजय करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुःख न लहुं... जिन ५ श्री उवसग्गहरं स्तवन् (योग मुद्रा में) उवसग्ग-हरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं. विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं विसहर-फुलिंग-मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ. तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ-जरा जंति उवसामं२. चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु-फलो होइ. नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ३. तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्प-पायव-महिए. पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ४. इय संथुओ महायस! भत्ति-भर-निब्मरेण हिअएण. ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास! जिण-चंद! ५. (दो हाथ मस्तक पर रखे, स्त्रियाँ कोहनी ऊंची न करें) जय वीयराय (मुक्ताशुक्ति मुद्रा में) जय वीयराय! जग-गुरु!, होउ ममं तुह प्पभावओ भयवं!. भव-निव्वेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफल-सिद्धी १. *मन का स्वभाव है, जितनी ना उतनी हाँ, कुनेह मे उसे शुभ में लगाए रखो.

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