Book Title: Chaityavandan Vidhi
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ चैत्यवंदन विधि विभाग चैत्यवंदन की मुद्राएँ मुद्रात्रिक (१) योग मुद्रा- इरियावहियं, चैत्यवंदन, नमुत्थुणं, स्तवन, अरिहंत चेइयाणं... १. दो हाथ जोड़ कर दोनों हाथ की अंगुलियाँ एक-दूसरे के बीच में नख परस्पर सटते हो इस तरह स्थापित करें. २. दोनों हाथ की कुहनियाँ पेट पर लगायें. ३. मस्तक थोड़ा झुकाकर रखने की इस मुद्रा को योगमुद्रा कहते (२) मुक्ताशुक्ति मुद्रा- जावंति चेइआई, जावंत के वि साहु और आभवमखंडा तक का आधा जयवीयराय... १. अंजली बनाने के लिए दो हाथ जोड़कर दशों अंगुलियों के सिरे एक दूजे को आमने-सामने छू जाये. २. दोनों हथेलियों में अंदर से पोलापन रहे और बाहर से मोती की सीप जैसा आकार बनायें. ३. दो हाथ ऊँचे कर ललाट को छूने की इस मुद्रा को मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहते हैं. (३) जिन मुद्रा- नवकार अथवा लोगस्स आदि कायोत्सर्ग में.. पैरों की एड़ी के बीच आगे से चार अंगुल और २. पीछे से इससे कुछ कम, करीब तीन अंगुल अंतर रखें. ३. दोनों हाथों के पंजे घुटनों की और रहे वैसे लटकते रखें. ४. दृष्टि को जिनबिंब अथवा नासिका के अग्र भाग में स्थिर रखें. इस मुद्रा को जिन मुद्रा कहते हैं. चैत्यवंदन विधि (प्रथम नीचे अनुसार इरियावहि करने हेतु निम्न सूत्र बोलकर एक खमासमण दे. इच्छामि खमासमण सूत्र इच्छामि खमा-समणो! वंदिउं, जावणिज्जाए निसीहिआए', मत्थएण वंदामि १. (भावार्थ- इस सूत्र द्वारा देवाधिदेव परमात्मा को तथा पंचमहाव्रतधारी साधु भगवंतों को वंदन किया जाता है.) (फिर निम्न सूत्र खड़े रहकर बोलें) * हम जैसा जीते है वैसा हमारा जीवन बनता जाता है. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ इरियावहियं सूत्र इच्छा-कारेण संदिसह भगवन्! इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं १. इरियावहियाए, विराहणाए २. गमणागमणे ३. पाण-क्कमणे, बीयक्कमणे, हरिय-क्कमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टी-मक्कडा-संताणा-संकमणे ४. जे मे जीवा विराहिया ५. एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया ६. अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया,उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ७. (भावार्थ- इस सूत्र से चलते-फिरते जीवों की अज्ञान से विराधना हुई हो या पाप लगे हों वे दूर होते हैं.) तस्स उत्तरी सूत्र तस्स उत्तरी-करणेणं, पायच्छित्त-करणेणं, विसोही-करणेणं, विसल्ली-करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं. (भावार्थ- इस सूत्र से इरियावहियं सूत्र से बाकी रहे हुए पापों की विशेष शुद्धि होती हैं.) अन्नत्थ सूत्र अन्नत्थ- ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्त-मुच्छाए १. सुहुमेहिं अंग-संचालेहिं, सुहुमेहिं खेलसंचालेहि, सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं २. एवमाइएहिं आगारेहिं, अ-भग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३. जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ४. ताव काय ठाणेणं मोणेणं झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ५. (भावार्थ- इस सूत्र में कायोत्सर्ग के सोलह आगारों का वर्णन तथा कैसे काउसग्ग करना वो बताया है.) (फिर एक लोगस्स का 'चंदेसु निम्मलयरा' तक का और न आता हो तो चार नवकार का जिनमुद्रा में कायोत्सर्ग करे, फिर प्रगट लोगस्स बोलें.) लोगस्स सूत्र लोगस्स उज्जोअ-गरे, धम्म-तित्थ-यरे जिणे. अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली * जो भव की भयानकता को जानता है वह धर्म की महानता को जानता है. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसभ-मजिअं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च सुमई च. पउम-प्पहं सुपासं, जिणं च चंद-प्पहं वंदे सुविहिं च पुप्फ-दंतं, सीअल-सिज्जंस-वासु-पुज्जं च. विमल-मणतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदानि कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणि-सुव्वयं नमि-जिणं च . वंदामि रिट्ठ-नेमिं पास तह वद्धमाणं च एवं मए अभिथुआ, विहुय-रय- मला पहीण-जर-मरणा. चउ-वीस पि जिणवरा, तित्थ-यरा मे पसीयंतु कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा. आरुग्ण-वोहि-लाभं समाहि-वर-मुत्तमं दितु ( कहकर बायाँ घुटना खड़ा करें, योग मुद्रा में) सकल कुशलवल्ली, पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानुः कल्पवृक्षोपमानः भवजलनिधि पोतः सर्व संपत्ति हेतुः स भवतु सततं वा श्रयसे शांतिनाथा श्रेयसे पार्श्वनाथः सामान्य जिन चैत्यवंदन तुज मूरतिने निरखवा, मुज नयणां तरसे, तुज गुणगाणने बोलवा, रसना मुज हरखे. १ २. धर्म का हर स्वरूप असीम परोपकार से भरा हुआ है. ३. चंदेसु निम्मल-यरा, आइच्चेसु अहियं पयास-यरा. सागर-वर-गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ७. (भावार्थ- इस सूत्र में चौबीस तीर्थंकरों की नामपूर्वक स्तुति की गई है.) चैत्यवंदन करने की विधि इच्छामि खमा-समणो! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए. मत्थारण वंदामि १. ( इस प्रकार से तीन खमासमण देकर ) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूँ' इच्छं. ४. ५. ६. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे, तो सेवक तार्या विना कहो किम हवे सरशे. एम जाणीने साहिबा ए, नेक नजर मोही जोय, ज्ञान विमल प्रभु नजरथी, तेह शुं जे नवि होय. २ जंकिंचि ( योगमुद्रा में) जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए, जाइं जिण बिंबाई, ताइं सव्वाइं वंदामि नमुत्थु णं सूत्र नमुत्थु णं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आइ-गराणं, तित्थ-यराणं, सयं-संबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सीहाणं, पुरिस वर पुंडरी आणं, पुरिस-वर-गंध-हत्थीर्ण, लोगुत्तमाणं, लोग-नाहाणं, लोग-हिआणं, लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोअ-गराणं, अभय-दयाणं, चक्छु-दयाणं मग्ग- दयाणं, सरण- दयाणं, बोहि दयाणं, धम्म- दयाणं, धम्म-देसयाणं, धम्म-नायगाणं, धम्म-सारहीणं, धम्म-वर चाउरंत - चक्कवट्टीणं, अप्पडिहय-वर-नाण-दंसण-धराणं, वियट्ट-छउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं सव्वभ्रूणं, सव्य-दरिसीणं, सिवमयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धिगइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअ भयाणं, जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति-नागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे ति-विहेण वंदामि. 7 जायंति येइआई सूत्र जावंति चेइआइं, उड्ढे अ अहे अ तिरिअ-लोए अ. सव्वाई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई १. इच्छामि खमा-समणो! वंदिरं, जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण वंदामि १. जावंत के दि साहू (मुक्ताशुक्ति मुद्रा में) जावंत के वि साहू, भरहेरवय-महा-विदेहे अ. सव्वेसिं तेसिं पणओ, ति-विहेण ति-दंड- विरयाणं १. घर में आए पागल कुत्ते का क्या करते हो? बस! अशुभ विचार भी कुछ ऐसे ही है. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कह कर स्तवन बोलें. सामान्य जिन स्तवन (योग मुद्रा में) जिन तेरे चरण की शरण ग्रहुं हृदय कमल में ध्यान धरत हुं, शिर तुज आण वहुं... जिन १ तुम सम खोळ्यो देव खलक में, पेख्यो नहि कबहुं.... जिन २ तेरे गुण की जपुं जप माला, अहोनिश पाप दहुं... जिन ३ मेरे मन की तुम सब जानो, क्या मुख बहोत कहुं.... जिन ४ कहे जस विजय करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुःख न लहुं... जिन ५ श्री उवसग्गहरं स्तवन् (योग मुद्रा में) उवसग्ग-हरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं. विसहर-विस-निन्नासं, मंगल-कल्लाण-आवासं विसहर-फुलिंग-मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ. तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठ-जरा जंति उवसामं२. चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु-फलो होइ. नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ३. तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्प-पायव-महिए. पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ४. इय संथुओ महायस! भत्ति-भर-निब्मरेण हिअएण. ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास! जिण-चंद! ५. (दो हाथ मस्तक पर रखे, स्त्रियाँ कोहनी ऊंची न करें) जय वीयराय (मुक्ताशुक्ति मुद्रा में) जय वीयराय! जग-गुरु!, होउ ममं तुह प्पभावओ भयवं!. भव-निव्वेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफल-सिद्धी १. *मन का स्वभाव है, जितनी ना उतनी हाँ, कुनेह मे उसे शुभ में लगाए रखो. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोग-विरुद्ध-च्चाओ गुरु-जण-पूआ परत्थ-करणं च. सुह-गुरु-जोगो तव्वयण-सेवणा आ-भवमखंडा 2. (योग मुद्रा में) वारिज्जइ जइ वि नियाण-बंधणं वीयराय! तुह समये. तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं 3. दुक्ख-क्खओ कम्म-क्खओ, समाहि-मरणं च बोहि-लाभो अ. संपज्जउ मह एअं, तुह नाह! पणाम-करणेणं 4. सर्व-मंगल-मांगल्यं, सर्व-कल्याण-कारणम्. प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैनं जयति शासनम् 5. (फिर खड़े होकर) अरिहंत चेइयाणं अरिहंत-चेइयाणं, करेमि काउस्सग्गं, वंदण-वत्तिआए, पूअण-वत्तिआए, सक्कारवत्तिआए, सम्माण-वत्तिआए, बोहि-लाभ-वत्तिआए, निरुवसग्ग-वत्तिआए, सद्धाए, मेहाए, धिईए, धारणाए, अणुप्पेहाए वड्ढमाणीए, ठामि काउस्सग्गं. अन्नत्थ सूत्र अन्नत्थ-ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्त-मुच्छाए 1. सुहुमेहिं अंग-संचालेहि, सुहुमेहं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं 2. एवमाइएहिं आगारेहिं, अ-भग्गो अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो 3. जाव अरिहंताणं भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि 4. ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि 5. फिर एक नवकार का कायोत्सर्ग कर, पार कर 'नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः' कह कर थोय कहें। थोय शंखेश्वर पासजी पूजिए, नरभवनो लाहो लीजिए; मनवांछित पूरण सुरतरु, जय वामासुत अलवेसरूं. जीवन में दृढ़ बनना, जड़ नहीं.