Book Title: Bramhashanti Yaksha Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 5
________________ १३० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी त्रिशूल और वरद् हैं। एक हाथ की वस्तु स्पष्ट नहीं है।' त्रिशूल और वृषभ जैन परम्परा के शूलपाणि यक्ष का स्मरण कराते हैं, जिसका स्वरूप, जैसा कि आगे कहा जा चुका है, शिव से प्रभावित रहा है। इस तरह स्पष्ट है कि ब्रह्मशान्ति यक्ष ल० ९वों-१०वीं शती ई० में जैन देवकुल (श्वेताम्बर) में सम्मिलित हुए । उमाकान्त शाह ने ब्रह्मशान्ति यक्ष के स्वरूप पर ब्रह्मा का प्रभाव स्वीकार किया है। किन्तु इस प्रसङ्ग में विचार करने पर स्पष्ट होता है कि ब्रह्मशान्ति का स्वरूप कभी स्थिर नहीं हो सका, यही कारण है कि साहित्यिक परम्परा और प्रतिमाङ्कनों में स्पष्ट अन्तर दृष्टिगत होता है। वाहन के रूप में हंस के साथ ही गज और वृषभ का अङ्कन भी उपर्युक्त धारणा का ही समर्थन करता है । उपलब्ध मूर्तियाँ कभी ज्ञात परम्परा का निर्वाह करती नहीं दीखती हैं। उमाकान्त शाह ने हंस तथा हाथों में पुस्तक और स्रुक के आधार पर ब्रह्मा का प्रभाव स्वीकारा है। साथ ही यह भी बताया है कि मारवाड़ और पश्चिम भारत में ब्रह्मोपासकों की प्रबलता के कारण जैन धर्म में ब्रह्मा के स्वरूप वाले यक्ष की ब्रह्मशान्ति के रूप में कल्पना की गयो।२ पश्चिम भारत में ब्रह्मा की बिखरी हुई स्वतन्त्र मूर्तियों के अतिरिक्त अजमेर के समीप पुष्कर स्थित ब्रह्मा मन्दिर तथा उत्तरी गुजरात में खेड् ब्रह्मा मन्दिर भी ब्रह्मा की लोकप्रियता के साक्षी हैं। ब्रह्मा की इस लोकप्रियता के कारण ही जैनों ने मोढेरा, साचौर, देलवाड़ा, कुम्भारिया तथा कुछ अन्य स्थलों पर ब्रह्मशान्ति की मूर्तियाँ स्थापित की। ब्रह्मशान्ति के शास्त्रीय-स्वरूप पर विचार करने से उस पर ब्रह्मा से अधिक विष्णु के एक अवतार स्वरूप-वामन का प्रभाव स्पष्ट होता है। निर्वाणकलिका में जटामुकुट, पादुका और उपवीत से युक्त ब्रह्मशान्ति अक्षमाला, दण्ड, छत्र और कमण्डलु से युक्त हैं । ग्रन्थ में ब्रह्मा से सम्बद्ध पुस्तक, स्रुक और हंसवाहन तथा यक्ष के चतुर्मुख होने का अनुल्लेख है। दूसरी ओर अग्निपुराण एवं वैखानस आगम जैसे ग्रन्थों में वामन के करों में छत्र, दण्ड और पुस्तक के होने का उल्लेख है। उपवीत धारित वामन को कभी-कभी लम्बोदर भी बताया गया है। ज्ञातव्य है कि ब्रह्मशान्ति के साथ श्मश्रु, जटामुकुट, हंसवाहन तथा करों में पुस्तक और स्रुक केवल शिल्पाङ्कन में ही प्रदर्शित हुआ है। साहित्य और शिल्प दोनों में प्रारम्भ में ब्रह्मशान्ति का चतुर्भुज स्वरूप आलेखित हुआ १. शाह, यू० पी०, पूर्वनिर्दिष्ट पृ० ६१ । २. वही, पृ० ६२-६३ । ३. वही, पृ० ६२-६३ । ४. छत्री दण्डी वामनः ''अग्निपुराण ४९.५ । छत्रदण्डधरं कौपीनवाससं शिखापुस्तकमेखलोपवीतकृष्णाजिनसमायुतं"-वैखानस आगम द्रष्टव्य, राव, टी० ए० गोपीनाथ, एलिमेण्ट्स आव हिन्दू आइकानोग्राफी, खण्ड १, भाग २, परिशिष्टसी, पृ० ३६; खण्ड १, भाग १, वाराणसी, १९७१ ( पुनर्मुद्रित ), पृ० १६३-६४; बनर्जी, जे० एन०, दि डेवलपमेण्ट ऑव हिन्दू आइकानोग्राफी, कलकत्ता, १९५६, पृ० ४१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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