Book Title: Bramhashanti Yaksha Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 4
________________ ब्रह्मशान्ति यक्ष १२९ जलपात्र हैं। दोनों ही उदाहरणों में वाहन नहीं हैं। तीसरी मूर्ति रङ्गमण्डप से लगे वायव्य वितान पर उत्कीर्ण है ( चित्र ४) । षड्भुज ब्रह्मशान्ति यहाँ त्रिभङ्ग में हैं। सुदीर्घ माला, हार, कुण्डल, यज्ञोपवीत एवं करण्डमुकुट से आभूषित, लम्बी दाढ़ी और मूंछोंवाले ब्रह्मशान्ति के वाम पाश्व में हंस भी उत्कीर्ण है। यक्ष के दो हाथ वरद् और अभय में हैं और शेष में छत्र, पद्म, पुस्तक और जलपात्र धारण किया है। किञ्चित् बृहद्जठर यक्ष के दक्षिण और वाम पार्यों में आराधकों की स्थानक मूर्तियाँ निरूपित हैं। इन आराधकों के एक हाथ जयमुद्रा में ऊपर उठे हैं । इन आकृतियों के समीप दो चामरधारिणी बनी हैं। इनके दक्षिण और वाम पाश्वों में क्रमशः ५ और ४ अन्य आकृतियाँ भी उकेरी हैं, जो सम्भवतः-सेवकों की आकृतियाँ हैं। मूर्ति के दोनों छोरों पर हंस की पुनः दो मूर्तियाँ बनी हैं । इस प्रकार विमलवसही में ब्रह्मशान्ति के साथ हंस केवल एक उदाहरण में ही आकारित किया गया है, किन्तु करों में छत्र, पद्म एवं पुस्तक की उपस्थिति तथा यक्ष के श्मश्रुयुक्त और किञ्चित् घटोदर होने में एकरूपता है। लूणवसही में ब्रह्मशान्ति की केवल एक ही मूर्ति मिलती है, जो रङ्गमण्डप से सटे अग्निकोण के वितान पर है (चित्र ५)। दाढ़ी-मूंछों, जटामुकुट, उपवीत एवं प्रलम्बमाला से युक्त षड्भुज यक्ष किञ्चित् घटोदर हैं । त्रिभङ्ग में अवस्थित यक्ष के दाहिने पार्श्व में हंस है। यक्ष के हाथों में वरदाक्ष, अभयमुद्रा, पद्म, स्रुक, वज्र और जलपात्र हैं। दोनों पाश्र्थों में घट एवं मालाधारी सेवकों को चार आकृतियाँ हैं। इनके समीप हरबाजू अभयाक्ष और जलपात्र से युक्त चार अन्य पुरुषाकृतियाँ हैं । यज्ञोपवीत से युक्त ये आकृतियाँ सम्भवतः ब्राह्मण साधु हैं। विमलवसही की षड्भुज मूर्ति के समान यहाँ भी दोनों सिरों पर हंस की दो आकृतियाँ बनी हैं। विमलवसही और लूणवसही की मूर्तियाँ ब्रह्मशान्ति के निरूपण में पूरी तरह ब्राह्मण देवकुल के ब्रह्मा का प्रभाव दरशाती हैं । ब्रह्मशान्ति के साथ कई अन्य आकृतियों का अङ्कन-इन स्थलों पर उनकी विशेष प्रतिष्ठा का परिचायक है। उमाकान्त शाह ने पाटण स्थित आदीश्वर मन्दिर एवं कुछ लघुचित्रों में ब्रह्मशान्ति के अङ्कन का भी उल्लेख किया है । आदीश्वर मन्दिर की मूर्ति में श्मश्रु और मूंछों से युक्त चतुर्भुज ब्रह्मशान्ति उपवीत एवं मुकुट से शोभित हैं और उनके हाथों में अक्षमाला, छत्र, पुस्तक और जलपात्र हैं।' जहाँ मूर्तियों में ब्रह्मशान्ति सर्वदा सौम्यमुख हैं, वहीं चित्रों में निर्वाणकलिका के निर्देशों के अनुरूप यक्ष को भयानक दर्शन वाला भी दिखाया गया है । छाणी ताड़पत्र-लघुचित्र में भयानक दर्शन वाले चतुभुंज यक्ष के हाथों में पुस्तक, छत्र, स्रुक और वरद् प्रदर्शित हैं । ललितासनासीन यक्ष के समीप हंस भी अङ्कित है। पाटण से प्राप्त कल्पसूत्र के चित्रों में भी चतुर्भुज ब्रह्मशान्ति का अङ्कन हुआ है । यहाँ गजवाहन (?) वाले ब्रह्मशान्ति भद्रासनासीन और उपवीत तथा मुकुटमण्डित हैं। यक्ष के तीन करों में जलपात्र, दण्ड, छत्र हैं और एक हस्त प्रवचनमुद्रा में है ।२ संवत् १४७० (ई० १४१३) के वर्धमानविद्यापट में चतुर्भुज ब्रह्मशान्ति का अत्यन्त रोचक अङ्कन हुआ है, जो ब्रह्मशान्ति यक्ष के निरूपण में ज्ञात परम्परा के स्थान पर जिनप्रभसूरि विवरणित “सत्यपुरतीर्थकल्प" का प्रभाव प्रतीत होता है, जिसमें ब्रह्मशान्ति को पूर्वभव में शूलपाणि यक्ष बताया गया है। "ब्रह्मशान्ति" अभिधानयुक्त इस चित्र में ललितमुद्रा में आसीन यक्ष का एक पैर वृषभ पर रखा है। यक्ष के तीन हाथों में प्रवचन, १. शाह, यू० पी०, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ६१-६२ । २. वही, पृ० ६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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