Book Title: Bole Bandhnarni Kathao
Author(s): Hasu Yagnik
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ७० अनुसन्धान ५० (२) परम्परानी लोककथाओ छे. अमांथी गोहिलवाडी बोली बोटाद विस्तारनी 'टणक-१', 'टणक-२', चोधरी बोलीनी 'भरवाडो' वगेरेमां उपर्युक्त प्राकृतमूळनी ज लोककथाओनां स्थानीय रूपान्तरो मळे छे. टणक-१नी कथानां डोशीनो दीकरो ‘कान आमळीने पण रडता छोकराने सरखो बेसाड' कहेती माताना बोल पकडी कान आमळी ले छे, 'जोर दइ वांसो कर' कहेता तळावकांठे स्नान करता डोसाने जोर करी तळावमां नाखी दे छे, भागती भेंशने गमेतेम करीने रोकवानुं कहेता रबारीनी भेंशने गेडीना फटके मारी नाखे छे. (पूर्ववर्ती कथाओमां घोडो छे तेनं आ स्थानीय रूपान्तर छे), रसना रेला चाले ओवी वार्ता कहेवानुं जणावती भरवाडणोनां मटका फोडे छे. भोग बनेला बधां टणक विरुद्धनी फरियादमां जोडाय छे. पटेलना घरे घोडी लईने रातवासो करतां लादमां रूपिया छुपावी हजार रुपियामां घोडुं फटकारी धूती ले छे. लग्न करवानी लालचे कोथळामां पुरातो भरवाड पण आ कथामां छे. अन्य जे कथाओना सन्दर्भ आप्या छे तेमां पण आ ज कुळ अने मूळनी कथा छे. बीजी ओक खास नोंधपात्र बाबत ओ छे के प्राकृत भाषामां वृत्ति रचनार ग्रन्थकारे गुजरातना गोहिलवाड स्पर्शी धोळकामांथी कण्ठप्रवाहनी लोककथाओने प्राकृतभाषामां बांधी छे ए ज भाषा-बोलीप्रदेशक्षेत्रमांथी वीसमी सदीना कण्ठप्रवाहना स्रोतमांथी आ कथाओ मळी अने लिखित दस्तावेजीकरण पामी छे. आथी, स्पष्ट थशे के, १. संस्कृत-प्राकृत-पालि वगेरे भाषाओनां कथासाहित्यमां जे कथाओ मळे छे तेमां मोटा भागनी कथाओ उद्भवविकासनी दृष्टि तो परम्परागत लोककथाओ छे, जेमां ओनो विनियोग करी लिखितरूप आपनार ग्रन्थकारोओ पोताना हेतु माटे जरूरी लागतां फेरफारो कर्यां. २. कहेवाती कथाओ लिखितरूपमां लोकविद्या Folklore वाणी माध्यमना Lore मांथी प्रशिष्ट-लिखितरूपना साहित्यमां कृतिरूप पामीने साहित्यमां लिखितस्वरूपे पण अनुग्रन्थोमां आवी अने लखनारना हेतुनी दृष्टिले ओनां रूपान्तरो थतां रह्यां (पालिनी गामणीचण्डनी अने प्राकृतनी अभागियानी कथा) ३. कोइ कथानुं कण्ठप्रवाहमांथी लिखितप्रवाहमा स्थानान्तर थाय ते पछी पण कण्ठप्रवाहमां ते कथानुं स्थानगत-बोलीगत-समयगत रूपान्तर थतुं रहे छे अने

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12