Book Title: Bisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Author(s): Mangilal Bhutodiya
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 11
________________ स्वकथ्य " ओसवाल जाति का इतिहास" मेरे लेखन का शिखर बिन्दु था | जिस तरह मैंने उसे जिया, मेरा पेशा, गृहस्थी, समय एवं सच कहूँ तो सारी सोच उसी को समर्पित थी । उसके प्रकाशित होने के बाद ही पता लगा कि जो मैं कर पाया वह सागर की एक बूँद मात्र है । पर यही बूंद-दर- बूंद मन को विराट सागर के अहसास से इस कदर लबालब भर देती है कि जीवन सार्थक लगता है। ऐसे ही 'जैन' होने का बोध मात्र संस्कार नहीं है, मैंने उसे सामाजिक एवं परम्परा संदर्भ से ओढ़ा नहीं है वरन् वह मेरा नैसर्गिक आत्मधर्म है। जब श्री हजारीमलजी बांठिया ने बीसवीं शदी के दिवंगत जैन शलाका पुरुषों के जीवन-प्रसंग लिखने का प्रस्ताव मेरे समक्ष रखा तो मुझे अपार खुशी हुई, वह भी इतिहास लिखने जैसा ही था । 'शलाका-पुरुष' जैसे शब्द से मेरा परिचय नहीं था । इस हेतु मुझे 'अभिधान राजेन्द्र कोश' की शरण लेनी पड़ी। मैं हैरान था जानकर कि कतिपय शब्द कैसे रूढ़ हो जाते हैं । इतिहास पुरुषों के चुनाव से पूर्व मेरी सोच इस एक शब्द पर ही केन्द्रित हो गई। जैन विद्वानों ने एक स्वर से ग्रंथ का नाम बदल देने की सलाह दी। अस्तु ग्रंथ का नाम " जैन विभूतियाँ' कर दिया गया। परन्तु ग्रंथ के आवरण चित्र में शास्त्रोक्त शलाका पुरुष को रूपायित करने का लोभ संवरण नहीं कर सका तदुपरांत इतिहास-पुरुषों के चयन का प्रश्न उठा । ग्रंथ-संयोजकों ने ग्रंथ हेतु वितरित परिपत्र में प्रस्तावित सूची प्रकाशित कर सुझाव आमंत्रित किए थे। अनेक नवीन नामों के सुझाव आए। यह चुनाव मेरी परीक्षा ही साबित हुआ। मैं अनवरत बहते जीवन का हामी हूँ, विध्वंश एवं निर्माण को विकास के आवश्यक पहलू मानता हूँ । यथावत स्थितियों की पकड़ से आजाद हुए बिना जीवन में क्रांति घटित नहीं होती। इसी तुला से मैंने

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