Book Title: Bibipur sthit Chintamani Parshwanath Jinalayni Prashasti
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text ________________ सप्टेम्बर 2008 17 (7) तेमणे लखेल 'उपदेशमाळा-बालावबोध'नी प्रत मळे छे. (8) सं. 1787 मां पाटणमां तेमणे 'अगडदत्त ऋषिनी चोपाई' बनावी छे. (4) भायखला-शेठ मोतीशाहे बनावेल आदीश्वर जिनालयना परिसरमा आवेल दादावाडीमां देरी नं.३मां सं. 1840 वर्षे महा सु. 13 बुधवारे प्रतिष्ठित थयेल 'पुण्यसागरसूरिजी'नी पादुका छे. तेनो लेख नीचे मुजब छे : 'सं. 1840 वर्षे माह सुदि 13 शने (तेरसने) वार बुधे महमई बींदरे भट्टारक श्रीपुण्यसागरसू. समस्त प्रतिष्ठितम् / सत्यसौभाग्यकर्ताओ प्रशस्तिमां श्लो. 48 अने श्लो. 85 मां पोताना गुरुर्नु नाम 'श्रीसौभाग्य' जणाव्युं छे. ते कोण हता, कोना शिष्य हता? ते जाणवा मळतुं नथी. वळी जैन गुर्जरकविओ भा. 4-253, 304 उपर कर्तानो परिचय आपता तेमने 'कल्याणसागर'ना शिष्य जणाव्या छे. तेथी कर्ता अने अनी गुरुपरम्पराशिष्यपरम्परा विषे वधु संशोधन करवू पडे ओम लागे छे. 'सं. 1687 मां सर्वज्ञशतक-सटीक प्रमाणिक छे के नहीं ? - आ बाबतमां राजसभामा जाहेर शास्त्रार्थ करवानी वात आवी त्यारे आ. राजसागरसूरिजीओ पोताना पक्ष तरफथी शास्त्रार्थ करवा माटे पं. सत्यसौभाग्यगणिने नियुक्त कर्या हता.' [जैन परं. इति भा.३ पृ. 746] प्रतिपरिचय सूरत-नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि ज्ञानभण्डारमा झेरोक्ष रूपे सचवायेल संवेगी उपाश्रय (हाज पटेलनी पोळ)नी आ प्रत छे. 8 पाना छे. लेखनप्रशस्ति (पुष्यिका)नुं पार्नु नथी. दरेक पानामां लगभग 11 लीटीओ अने 30-35 अक्षर छे. पडिमात्रामां लखायेल आ प्रतिना अक्षर सुवाच्य छे. लेखके ग्रन्थ प्रारम्भमा नमस्कार वखते पोताना गुरु सत्यसौभाग्यगणिने नमस्कार कर्या छे. तेथी कही शकाय के तेमना शिष्य परिवारमांथी कोई आ प्रत लखी हशे. अथवा प्रतनी पुष्पिका सम्पूर्ण मळे तो तेनो निर्णय थइ शके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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