Book Title: Bhavna Ek Chintan Author(s): Ranjankumar Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 4
________________ - यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार सन्दर्भ सुर-असुर नराईणं रिद्धिविसेसा सुहाई वा।। मरणविभत्ति 516 1. प्राकृतसूक्तिसरोज, भावनाधिकार, 3/16 8. लोगो विलीयदि इमो फेणोव्व सदेव माणुसतिरिक्खो। 2. सक्तिसंग्रह, 41, वि.द्र. जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार - रिद्धिओ सव्वाओ सुविणयसंदेसणसमाओ।। भगवतीदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-२, डॉ. सागरमल आराधना 17 जैन, पृ. 423 3. भावपाहुड 66 स्वकर्मवशगाः शश्वत्तयेते क्वापि देहिनः।। भावनायोग 5 4. तत्त्वार्थसूत्र 7/6, योगशतक 79, योगशास्त्र 4/117 10. वपुर्विद्धि रुजाक्रान्तं जराक्रान्तं च यौवनम्। अद्धवमसरणमेगप्तभण्णसंसारलोपमसइत्तं। ऐश्वर्यं च विनाशान्तं, मरणान्तं च जीवितम्। ज्ञानार्णव 1 आसवसंवरणिज्जरधम्मबोधिं च चितिज्ज।। भगवती 11. महाभारत, शांतिपर्व 175/16 आराधना 1710 12. वाधनालक्षणं दुःखम्। न्यायसूत्र 21 6. इदं शरीरमनित्यम् अशुच्यशुचिसंभवम्। 13. संयुत्तनिकाय 34/1/1/1, पृष्ठ 451 (भाग-२) अशाश्वतावासमिदं, दुःखक्लेशानां भाजनम्।। उत्तराध्यनसूत्र 14. धम्मपद 277 15. भावनायोग पृ. 11 7. सव्वट्ठणाइं असासयाइं इह चेव देवलोगे च కాదశరుదురురురురురురురురులోeninnanandురురురురంగారంలో Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4