Book Title: Bhavna Bhavnashini
Author(s): Kishor Mamaniya
Publisher: Kishor Mamaniya

Previous | Next

Page 39
________________ निग्रंथ भावना निर्ग्रन्थता की भावना अब हो सफल मेरी । बीते अहो आराधना में हर घड़ी मेरी ।। टेक....... || करके विराधन तत्व का, बहु दुःख उठाया । आराधना का यह समय, अतिपुण्य से पाया || मिथ्या प्रपंचों में उलझ अब, क्यों करूँ देरी ? निर्ग्रन्थता... || जब से लिया चैतन्य के, आनन्द का आस्वाद । रमणीक भोग भी लगें, मुझको सभी निःस्वाद ।। ध्रुवधाम की ही ओर दौड़े, परिणति मेरी ।। निर्ग्रन्थता... || पर में नहीं कर्त्तव्य मुझको, भासता कुछ भी । अधिकार भी दीखे नही, जग में अरे कुछ भी ।। निज अंतरंग में ही दिखे, प्रभुता मुझे मेरी ।। निर्ग्रन्थता... || क्षण-क्षण कषायों के प्रसंग, ही बनें जहाँ । मोही जनों के संग में, सुख शान्ति हो कहाँ ।। जग-संगति से तो बढ़े, दुखमय भ्रमण फेरी ।। निर्ग्रन्थता... || अब तो रहूँ निर्जन वनों में, गुरुजनों के संग | शुद्धात्मा के ध्यानमय हो, परिणति असंग ।। निजभाव में ही लीन हो, मेट्रॅ जगत-फेरी ।। निर्ग्रन्थता... || कोई अपेक्षा हो नहीं, निर्द्वन्द्व हो जीवन | संतुष्ट निज में ही रहूँ, नित आप सम भगवन् ।। हो आप सम निर्मुक्त, मंगलमय दशा मेरी ।। निर्ग्रन्थता... || अब तो सहा जाता नहीं, बोझा परिग्रह का । विग्रह का मूल लगता है, विकल्प विग्रह का ।। स्वाधीन स्वाभाविक सहज हो, परिणति मेरी ।। निर्ग्रन्थता... | (अध्यात्म पूजाञ्जलि) ભાવના ભવનાશીની ..3७..

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48