Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 14
________________ श्रीअमम // 294 // तेनोचे कोऽपि दिव्यः पुमानिति / रोप्यतेऽसौ मया नन्दभृतश्रुतस्तवाङ्गणे // 12 // कियतोऽपि पुनः कालादन्यत्रारोपयिष्यते / एवं जिनेशशालेरिर्वतस्य परा स्फातिभविष्यति // 13 // शाखिनो नवकृखोऽस्याऽन्यत्रान्यत्राधिरोपणात् / फलं भविष्यत्युत्कृष्टोत्कृष्टोरुरसपेश- * चरित्रम् / | लम् // 14 // कल्याणपाठकैः पेठे तदेति नृपमङ्गलम् / चूतवत्तनुतात्प्रातःक्षणस्तेऽरुणपल्लवः // 15 // साऽथ प्रबुद्धा तं स्वप्नं राज्ञेऽशं नेमिनाथ प्रथमभवे सदऽसावपि / विज्ञैर्व्यचारयत् तेऽपि व्याख्युः पुत्रजनि शुभाम् // 16 // नवकृत्वस्तु चूतद्रोरन्यत्रान्यत्र रोपणे / न जानीमः फलं धनधनवती वेत्ति केवलं केवली यदि // 17 // श्रुत्वेति धारिणी देवी मजन्तीव सुधाहृदे / स्फीतेनानन्दभारेण समं गर्भ बभार सा // 18 // ततो | स्वरूपम् नवसु मासेषु दिनेष्वर्द्धाष्टमेषु च / धारिण्यसूत तनयं कल्पद्रुमिव देवभूः॥१९॥ ततो निर्मुक्तनिःशेषबन्धनस्थितमानवम् / दीयमा| नमहादानं निदानं हर्षसम्पदः॥२०॥ मानादिवृद्धिभिः साधु दशाहावधि विस्तृतम् / सुतस्य कारयामास राजा जन्ममहोत्सवम् // | // 21 // दशाहेऽथ व्यतिक्रान्ते पुण्याहे गणकोदिते / वस्त्राभरणरत्नाद्यैः कुलजाखऽर्चितासु च / / 22 / / हास्यते मद्गुणैर्नायं मत्वेतीव पिता व्यधात् / स्वनामपल्लवोद्भूतां धन इत्यभिधां शिशोः // 23 // पित्रोः सार्द्ध प्रमोदेन तत्राऽवर्द्धिष्ट स क्रमात् / आशाः प्रकाशाः |* कुर्वाणः शुक्लपक्ष इवोडुराट् // 24 // गुरुनऽखेदयन्नेव श्रुतं प्राचीव जन्मनि / कलाकलापशास्त्राणां तत्त्वं निरचिनोदसौ // 25 / / विष्वग सगे-७ * विस्मेरपुन्नाग पौरस्त्रीगमधुव्रतम् / स्मरलीलावनं प्राप यौवनं च क्रमाद् धनः // 26 / / इतश्चानेकपापाङ्गभङ्गकर्मणि कर्मठः। राजाभूत्कुसुमपुरे सिंहः सिंह इवोत्कटः॥२७॥ गङ्गेव विमला तस्य विमला प्राणवल्लभा। आसीत् पट्टमहादेवी देवीव भुवमागता॥२८॥ // 294 // कन्या धन्या धनवतीत्यस्यां बहुसुतोपरि। सिंहस्याऽभूद् भृरिरनोपरीव श्रीमहोदधेः॥२९॥ सा द्वितीयेन्दुलेखेव लावण्येनापराः स्त्रियः। तारा इव निरस्यन्ती ववृधेऽथाग्रहीत्कलाः॥३०॥ खसौभाग्येन साजैषीद् रतिप्रीती सभर्तृके / तदादर्शी यत्कपोलौ दधे

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