Book Title: Bhashyakar Ek Parishilan Author(s): Kusumpragyashreeji Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 5
________________ - यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - संग्रहीत किए गए हैं, ऐसा पूर्वापर के प्रकरण से प्रतीत होता है। - जीतकल्पभाष्य, 2605 भाष्यसाहित्य की अनेक गाथाएँ दिगंबर-ग्रन्थों में भी संक्रांत हुई 4. बृहत्कल्पपीठिका, टी.पृ. 2 हैं। भगवती-आराधना एवं मूलाचार में भाष्य-साहित्य की अनेक गाथाएँ शब्दशः मिलती हैं। व्याख्याग्रन्थों में भाष्य-साहित्य का 5. निशीथपीठिका, भूमिका, पृ. 2 महत्त्वपूर्ण स्थान है। ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं 6. बृभा. भाग - 6, भूमिका पृ. 20 सांस्कतिक दृष्टि सेअनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य भाष्यसाहित्य में मिलते 7. अंगत्तरनिकाय, 1.213 हैं। भाष्यसाहित्य का अनुशीलन एवं पर्यवेक्षण अनुसंधान के क्षेत्र में अनेक नई दिशाएँ खोलने वाला होगा, ऐसा प्रतीत होता है। 8. व्यभा. 2959 9. विशेषणवती, गा. 33 सन्दर्भ 10. व्यभा. 2638 1. आवश्यक पर तीन भाष्यों का उल्लेख मिलता है- मूलभाष्य, भाष्य एवं विशेषावश्यकभाष्य। 11. जीतकल्प चूर्णि, पृ. 1,2 12. द्वितीय भद्रबाहु ने नियुक्तियों में परिवर्तन एवं परिवर्धन भी 2. बृहत्कल्प पर भी बृहद् एवं लघु भाष्य लिखा गया। बृहद्भाष्य किया है, जिनका समय विक्रम की छठी शताब्दी है। तीसरे उद्देशक तक मिलता है, वह भी अपूर्ण है। 14. पंचकल्पभाष्य, 609 3. कप्पव्वनहाराणं उदधिसरिच्छाण तह णिसीहस्स। सुतरयणबिन्दुणवणीतभूतसारेस 'णातव्यो / / 15. दशवैकालिक अगस्त्यसिंहचूर्णि, भूमिका, पृ. 15-17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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