Book Title: Bharuch se Prapta Jina Dhatu Pratimao ke Lekh Author(s): Ashit Shah Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 3
________________ ३४६ आशित शाह Nirgrantha मध्ययुग में भावदेवाचार्य का एक प्रसिद्ध चैत्यवासी गच्छ था, जो कभी कभी 'भावडाचार्य गच्छ' के नाम से भी पहचाना जाता था । इस गच्छ के अनेक प्रतिमा लेख मिल चुके हैं । ६. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १२२५ (२५१) अंग-रचनायुक्त तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की प्रतिमा में सिंहासन के मध्य में सर्प लाञ्छन का रेखांकन है। लाञ्छन के दोनों ओर की सिंहाकृति खंडित हो चुकी है । नागफणा विस्तृत है। फणा के दोनों ओर खेचर मालाधर एवं नृत्य करते हुए गांधर्व, तीर्थङ्कर के दोनों ओर चामरधारी, जिनमें से प्रतिमा के बाईं ओर के चामरधारी घुटने से नीचे तक खंडित है । सिंहासन के दोनों ओर यक्ष-यक्षी, धर्मचक्र, नवग्रह आदि का अंकन प्रथम की प्रतिमाओं की तरह ही है । प्रतिमा के पीछे निम्नाङ्कित लेख है। ९० संवत् १२२६ ज्येष्ठ सुदि ८ ग्रे(गु), अंपिग(ण) पल्या रुविणीक्या लखमण पाल्हण देल्हण सगेतया पार्श्वनाथ बिम्ब कारितं श्री परमानन्द (नाप (से. मी.) ऊँचाई - २३.५ लम्बाई- १५ चौड़ाई - ९) "श्री परमानन्द' से यहाँ 'परमानन्द सूरि प्रतिष्ठितं' ऐसा विवक्षित हो। इस नाम के सूरि के काल के लेख पूर्व मिले है । ७. महावीरस्वामी - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १२३४ (१३) अन्य प्रतिमाओं की तरह यह प्रतिमा भी प्रातिहार्य युक्त है। तीर्थङ्कर की गद्दी के नीचे मध्य में वीरासन में शान्तिदेवी का अंकन पश्चिम भारतीय शैली की विशेषता है जो अन्यत्र देखने में नहीं आती है। जिनपीठिका पर मध्य में धर्मचक्र एवं हिरनों का स्पष्ट अंकन, दोनों छोर पर गोलाकार आधार पर वीरासन एवं आराधक की मुद्रा में श्रावक-श्राविकाएँ अंकित किए गए है। १ सं. १२३४ मार्ग सुदि १५ शुक्रे ऊोह कालिज(जे) श्री महावीर प्रत्यामा कारापिता गुणदेव्या आत्मश्रेयार्थं प्रतिष्ठित श्री चन्द्रप्रभाचार्यैः ॥ (नाप (से. मी.) ऊँचाई - २१ लम्बाई - १४. ५ चौड़ाई - ९.५.) ८. जिन प्रतिमा -एकतीर्थी -विक्रम संवत् १२३९ (२२) प्रतिहार्ययुक्त इस प्रतिमा की पहचान सम्भव नहीं है क्योंकि पूजाविधि से प्रतिमा का ऊपरी परत एवं लाञ्छन नष्टप्राय है पर यह प्रतिमा तीर्थकर मल्लिनाथ की होने की संभावना है क्योंकि लेख में श्री मलअस्पष्ट रूप से पढ़ने में आता है। अन्य प्रतिमाओं की तरह ही इस प्रतिमा में भी चामरधारी, यक्ष-यक्षी, धर्मचक एवं नवग्रह, श्रावक-श्राविका आदि उपस्थित हैं । संवत् १२३९ कार्तिक सुदि १ भ्रातृ रंरालेन...मातृ प्रियम श्री मल....कारिता प्रतिष्ठिता श्री सर्वदेवसूरिभिः (नाप (से. मी.) ऊँचाई - १८ लम्बाई - १३.५ चौड़ाई - ८.) ९. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १२-- (२०) तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की इस प्रतिमा में भी प्रथम की तरह प्रतिमा की ऊपरी परत एवं लेख नष्टप्राय है। सिर्फ संवत् १२२३ वर्षे इतना ही वाच्य है बाकी हिस्सा वाच्य नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5