Book Title: Bharuch se Prapta Jina Dhatu Pratimao ke Lekh
Author(s): Ashit Shah
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरुच से प्राप्त जिन-धातुप्रतिमाओं के लेख आशित शाह भरुच गुजरात का प्रसिद्ध नगर है। नर्मदा तट पर स्थित यह नगर प्राचीन काल में भगकच्छ के नाम से जाना जाता था । यहाँ स्थित जिनमन्दिर के पास कुछ वर्ष पहले खुदाई से ७८ धातु निर्मित जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी, जिनमें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की ३१, शान्तिनाथ की ८, आदिनाथ की ७, अर्हत् महावीर की ४, जिन चन्द्रप्रभ की २, विमलनाथ की १, कुंथुनाथ की १ एवं अज्ञात जिन प्रतिमाएँ २४ का समावेश है । इनमें से कुछ प्रतिमाएँ परम पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से एवं भरुच जैन संघ की उदारता से सम्राट सम्प्रति संग्रहालय, कोबा में संगृहीत की गई हैं। सलेख प्रतिमाएँ विक्रम संवत् ११४३ से १३९१ के बीच की है। प्रतिमाओं के पीछे अंकित ज्यादातर लेख नष्टप्राय: या घिस चुके है । फिर भी इनमें से १६ प्रतिमाओं के वाच्य लेखों को यहाँ प्रकाशित किये जा रहे है। १. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - त्रितीथि जिन प्रतिमा - विक्रम संवत् ११४३ (६७) सप्तफणायुक्त तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ सिंहासन पर मध्य में पद्मासन मुद्रा में विराजित हैं। दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में अन्य दो तीर्थङ्कर खडे हैं, जिनकी पहचान सम्भव नहीं हैं। सिंहासन के नीचे दो नागचक्र के बीच कुम्भ का अंकन है । पीठिका पर, सिंहासन के एक छोर पर सर्वानुभूति यक्ष एवं दूसरे छोर पर देवी अंबिका स्थित है। पीठिका के दोनों छोर पर निकले स्तंभ पर चामरधारी का अंकन है, और ऊपर मध्य में धर्मचक एवं हिरन के अंकन है जो घिस चुके हैं एवं एक छोर पर चार ओर दूसरे छोर पर पाँच ग्रहों को अंकित किया गया हैं । तीर्थङ्कर के ऊपर त्रिछत्र, दोनों ओर आकाशचारि मालाधर एवं स्तूपि के दोनों ओर अशोकपत्र एवं परिकर को अलंकृत करने के हेतु रेखांकन आदि किया गया है। प्रतिमा के पीछे अंकित लेख निम्मलिखित है । "सं. ११४३ वरदेव वराईक सुत का. प्र." (नाप (से. मी.) ऊँचाई - १६.५ लम्बाई - ११.५ चौड़ाई - ५.५.) २. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ, पंचतीर्थी प्रतिमा - प्राय: वि. सं. १०-११वी शताब्दी (७४) मुख्य तीर्थङ्कर के रूप में पार्श्वनाथ मध्य में पद्मासन में बिराजमान हैं। दोनों ओर कायोत्सर्ग में दो तीर्थकर पीठिका से निकले कमलासन पर खड़े हैं। ऊपर छत्रांकित है, और इस के ऊपर पद्मासनस्थ दो तीर्थङ्कर के अंकन हैं । मुख्य त्रिछत्र के दोनों ओर मालाधर के अंकन है। तीर्थङ्कर के सिंहासन के नीचे प्रथम की तरह दो नागचक्र के बीच कुम्भ का अंकन जैसा लग रहा है । पीठिका के मध्य में दांडीयुक्त धर्मचक्र व हिरनों के अंकन है। दोनों ओर चार व पाँच मिलाकर नवग्रहों के अंकन है । पीठिका के दोनों छोर से निकले कमलासन पर एक ओर सर्वानुभूति और दूसरी ओर शिशु युक्त देवी अंबिका वीरासन में स्थित है। प्रतिमा पर काफ़ी पूजाविधि होने के कारण अंकनों के चेहरे आदि भाग नष्ट हो चुके हैं। प्रतिमा के पीछे सिर्फ 'विहिल' अंकित किया गया है। (नाप (से. मी) ऊँचाई - १५ लम्बाई - ११.५ चौड़ाई - १४.) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Vol. III 1997-2002 भरुच से प्राप्त जिन- धातुप्रतिमाओं के लेख ३. पार्श्वनाथ त्रितीर्थी प्रतिमा विक्रम संवत् ११७८ ( ११ ) प्रातिहार्ययुक्त तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के सिंहासन में दो चक्र के अंकन हैं। जिनमें से प्रतिमा की दाईं ओर का चक्र खंडित है। मुख्य तीर्थङ्कर के दोनों ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े दो तीर्थङ्कर के अंकन हैं । पीठिका के दोनों छोर से निकले कमलासन पर चामरधारी के अंकन है। नीचे सिंहासन के दोनों ओर सर्वानुभूति यक्ष एवं यक्षी अंबिका के अंकन है। पीठिका के मध्य में धर्मचक्र व नवग्रह एवं दोनों छोर पर श्रावक-श्राविका के अंकन है, जो शायद इस प्रतिमा के प्रतिष्ठापक है । परिकर के अर्धगोलाकार में ताँबे की दो परतों के बीच चाँदी की परत, नागछत्र के भीतरी चाँदी की परत, कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थङ्कर की कमर पर, चामरधारी की कमर पर एवं तीर्थङ्कर की गद्दी व सिंहासन के ऊपरी छोर चाँदी - ताँबे की परत जड़ित है। प्रतिमा के पीछे निम्नाङ्कित लेख है । ९० संवत् ११७८ पोस वदी ११ शुक्रे श्री हाईकपुरीय गच्छे श्री गुणसेनाचार्य संताने सवणी ट्ठलट्ठमे a. जगणोग सुत नवीलेन भा. जयदेवि समन्वितेन देव श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा उभय श्रेयार्थं कारिता प्र. ( नाप ( से. मी.) ऊँचाई २३.५ लम्बाई १७.५ चौड़ाई ९.५) हाइकपुरीय गच्छ के लेख अत्यल्प मात्रा में मिले हैं। - ५. - - ४. पार्श्वनाथ एकतीर्थी प्रतिमा विक्रम संवत् १२१६ (३४) प्रातिहार्य सहित तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की गद्दी के नीचे जिन के लाञ्छन के रूप में सर्प का रेखांकन है । दोनों ओर सिंहाकृति, सिंहासन के दोनों छोर पर यक्ष यक्षी, पीठिका के मध्य में धर्मचक्र, हिरन, नवग्रह ऊपरी भाग में स्तूप किंवा कलश के दोनों ओर निम्नाङ्कित लेख है । व श्रावक-श्राविका के अंकन किए गए है। परिकर के अशोकपत्र का अंकन किया गया है। प्रतिमा के पीछे - सं. १२१५ वैशाख सु १२ श्री थारागच्छे हीमकस्थाने जसथ ( ध )र पुत्र जसधवलेन जसदेवी श्रेयसे कारितां नाप (से. मी.) ऊँचाई १८ लम्बाई थारागच्छ के कुछ लेख पहले मिल चुके है । शायद इससे थारापद्र गच्छ अभिप्रेत हो । तीर्थङ्कर शान्तिनाथ एकतीर्थी प्रतिमा विक्रम संवत् १२१८ (१४) पद्मासन में बिराजित तीर्थङ्कर के सिंहासन के मध्यमें उनका लाञ्छन हिरन का रेखांकन प्रायः नष्ट हो चुका है । दोनों ओर सिंहाकृति, यक्ष-यक्षी, तीर्थङ्कर के दोनों ओर चामरधारी शिर के दोनों ओर उड्डीयमान मालाधर एवं पीछे अलंकृत आभामण्डल का रेखांकन, त्रिछत्र के दोनों ओर नृत्यमुद्रा में गांधर्व, पीठिका के दोनों छोर पर आराधक रूप में श्रावक-श्राविका, मध्य में धर्मचक्र, हिरन व नवग्रह और परिकर के ऊपरी भाग में स्तूप के दोनों ओर अशोकपत्र के अंकन किए गए हैं। अर्धगोलाकार परिकर में, तीर्थङ्कर की आँखों में श्रीवत्स व गद्दी के मध्य भाग में चाँदी की परत जड़ित है। प्रतिमा के पीछे निम्नाङ्कित लेख है । सं. १२१८ वैशाख वदि ५ शनौ श्री भावदेवाचार्य गच्छे जसधवल पुत्रि कया सह जिया स्वात्म श्रेयार्थं श्री शान्तिजिन कारितं । ( नाप (से. मी.) ऊँचाई २२ लम्बाई - - - - - - ११ चौड़ाई ७. - १३.५ चौड़ाई ३४५ ८.) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ आशित शाह Nirgrantha मध्ययुग में भावदेवाचार्य का एक प्रसिद्ध चैत्यवासी गच्छ था, जो कभी कभी 'भावडाचार्य गच्छ' के नाम से भी पहचाना जाता था । इस गच्छ के अनेक प्रतिमा लेख मिल चुके हैं । ६. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १२२५ (२५१) अंग-रचनायुक्त तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की प्रतिमा में सिंहासन के मध्य में सर्प लाञ्छन का रेखांकन है। लाञ्छन के दोनों ओर की सिंहाकृति खंडित हो चुकी है । नागफणा विस्तृत है। फणा के दोनों ओर खेचर मालाधर एवं नृत्य करते हुए गांधर्व, तीर्थङ्कर के दोनों ओर चामरधारी, जिनमें से प्रतिमा के बाईं ओर के चामरधारी घुटने से नीचे तक खंडित है । सिंहासन के दोनों ओर यक्ष-यक्षी, धर्मचक्र, नवग्रह आदि का अंकन प्रथम की प्रतिमाओं की तरह ही है । प्रतिमा के पीछे निम्नाङ्कित लेख है। ९० संवत् १२२६ ज्येष्ठ सुदि ८ ग्रे(गु), अंपिग(ण) पल्या रुविणीक्या लखमण पाल्हण देल्हण सगेतया पार्श्वनाथ बिम्ब कारितं श्री परमानन्द (नाप (से. मी.) ऊँचाई - २३.५ लम्बाई- १५ चौड़ाई - ९) "श्री परमानन्द' से यहाँ 'परमानन्द सूरि प्रतिष्ठितं' ऐसा विवक्षित हो। इस नाम के सूरि के काल के लेख पूर्व मिले है । ७. महावीरस्वामी - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १२३४ (१३) अन्य प्रतिमाओं की तरह यह प्रतिमा भी प्रातिहार्य युक्त है। तीर्थङ्कर की गद्दी के नीचे मध्य में वीरासन में शान्तिदेवी का अंकन पश्चिम भारतीय शैली की विशेषता है जो अन्यत्र देखने में नहीं आती है। जिनपीठिका पर मध्य में धर्मचक्र एवं हिरनों का स्पष्ट अंकन, दोनों छोर पर गोलाकार आधार पर वीरासन एवं आराधक की मुद्रा में श्रावक-श्राविकाएँ अंकित किए गए है। १ सं. १२३४ मार्ग सुदि १५ शुक्रे ऊोह कालिज(जे) श्री महावीर प्रत्यामा कारापिता गुणदेव्या आत्मश्रेयार्थं प्रतिष्ठित श्री चन्द्रप्रभाचार्यैः ॥ (नाप (से. मी.) ऊँचाई - २१ लम्बाई - १४. ५ चौड़ाई - ९.५.) ८. जिन प्रतिमा -एकतीर्थी -विक्रम संवत् १२३९ (२२) प्रतिहार्ययुक्त इस प्रतिमा की पहचान सम्भव नहीं है क्योंकि पूजाविधि से प्रतिमा का ऊपरी परत एवं लाञ्छन नष्टप्राय है पर यह प्रतिमा तीर्थकर मल्लिनाथ की होने की संभावना है क्योंकि लेख में श्री मलअस्पष्ट रूप से पढ़ने में आता है। अन्य प्रतिमाओं की तरह ही इस प्रतिमा में भी चामरधारी, यक्ष-यक्षी, धर्मचक एवं नवग्रह, श्रावक-श्राविका आदि उपस्थित हैं । संवत् १२३९ कार्तिक सुदि १ भ्रातृ रंरालेन...मातृ प्रियम श्री मल....कारिता प्रतिष्ठिता श्री सर्वदेवसूरिभिः (नाप (से. मी.) ऊँचाई - १८ लम्बाई - १३.५ चौड़ाई - ८.) ९. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १२-- (२०) तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की इस प्रतिमा में भी प्रथम की तरह प्रतिमा की ऊपरी परत एवं लेख नष्टप्राय है। सिर्फ संवत् १२२३ वर्षे इतना ही वाच्य है बाकी हिस्सा वाच्य नहीं है। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४७ Vol. III - 1997-2002 भरुच से प्राप्त जिन-धातुप्रतिमाओं के लेख (नाप (से. मी.) ऊँचाई - २० लम्बाई - १३ चौड़ाई - ७. ५.) १०. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - त्रितीर्थी प्रतिमा - संवत् १३०१ (१३१०) (६६) मध्य में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ, ऊपर सप्त नागफणा, जिन के शरीर के बाकी हिस्से का रेखांकन तीर्थङ्कर की पीठिका तक किया गया है। दोनों ओर चामरधारी, यक्ष-यक्षी, सिंहासन के मध्य भाग में सर्प लाञ्छन का स्पष्ट रेखांकन, पीठिका पर धर्मचक्र, नवग्रह एवं आराधक स्त्री-पुरुष आदि अष्ट प्रातिहार्य के अंकनों के साथ-साथ परिकर को भी अलङ्कृत किया गया है । ९० ॥ संवत् १३१० वर्षे फागुण वदि ५ स( श)नौ श्री प्रागवाटत्वये [ प्राग्वाटान्वये] पो. तिहणपाल पालक (त्र, त्व तूतये श्रेयसे प्रा. क्षीमसीहेन भा.न्यकया सहितेन श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता प्र. श्री यशोदेवसूरिभि । (नाप (से. मी.) ऊँचाई - १७.५ लम्बाई - ११.५ चौड़ाई - ७.५.) ११. आदिनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १३२७ (३८) विशिष्ट प्रकार के परिकरयुक्त तीर्थङ्कर आदिनाथ की यह प्रतिमा प्रातिहार्य सहित है । प्रतिमा में नज़र आ रही लालिमा ताँबे के अधिकतर प्रयोग से है। द्विपीठिकायुक्त इस प्रतिमा की प्रथम पीठिका पर यक्षयक्षी, धर्मचक्र एवं नवग्रह के अंकन हैं और द्वितीय पीठिका के दोनों छोर पर आराधक/कारापक श्रावकश्राविका के अंकन है । ९सं. १३२७ माह सुदि ५ श्रीमाल ज्ञातिय शांतान्वये भांडा राजा सुत भांडा, नाग(गेन्द्र भायाँ वा बोउलदेवि तयोः सुत राणाकेन पित्रोः श्रेयार्थे श्री आदिनाथ बिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं भावडार गच्छे श्री भावदेवसूरिभिः ठ॥ भावडार गच्छ ऊपर कथित भावदेवाचार्य गच्छ का ही नामान्तर है । (नाम (से. मी.) ऊँचाई- १६.५ लम्बाई - १२ चौड़ाई - ६.५) १२. चन्द्रप्रभस्वामी - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १३२६ (३५) प्रातिहार्य समेत इस प्रतिमा में भी अन्य प्रतिमाओं की तरह चामरधारी, धर्मचक्र, नवग्रह, यक्ष-यक्षी आदि अंकन किए गए है। ९० ॥ संवत् १३२६ वर्षे माघ वदि र रवौ मोढज्ञातिय -(सात् कुवार भार्या ठ जयतु श्रेयार्थे ठ. आहडेन श्री चन्द्रप्रभबिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं श्री परमानन्दसूरिभिः ।। प्रतिमा का कारापक मोढ ज्ञाति का होने से लेख ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। १३. आदिनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् १३३१ (१६) आदिनाथ की प्रातिहार्य संलग्न इस प्रतिमाओं में अन्य प्रतिमाओं से अलग कुछ नई विशेताएँ हैं जिनमें प्रतिमा की पीठिका के दोनों छोर पर बने लंब चतुष्कोण आधार पर अंकित अष्टग्रह, सिंहासन के दोनों छोर पर यक्ष-यक्षी के अंकन नहीं है पर उनके स्थान पर दो चतुष्कोण के अंकन किए गए हैं। जिन पर सूर्य जैसा रेखांकन किया गया है, प्रतिमा के पीछे दण्डधारी सेवक का अंकन महत्त्वपूर्ण है जो किसी विशेष गच्छ या स्थान की विशिष्टता है। प्रतिमा लेख में किसी गच्छ या स्थान का उल्लेख नहीं किया गया है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 348 आशित शाह Nirgrantha संवत् 1331 वैशाख सुदि 1 सोमे श्री प्राग्वाट ज्ञातीय महं. रूपासुत महं. साग( मन्देिन श्री आदिनाथ बिम्ब कारितं प्रतिष्ठितं / / (नाप (से. मी.) ऊँचाई - 21 लम्बाई - 14 चौड़ाई - 8.5.) 'मह' शब्द से सूचित है कि बनानेवाले मंत्री कुल के थे। 14. तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - पंचतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् 1353 (77) तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की यह प्रतिमा में अन्य प्रतिमाओं से कुछ विशेषता हैं, इस प्रतिमा में एक-दो प्रातिहार्य को छोड़कर अन्य प्रातिहार्य एवं किन्नर-गांधर्व आदि के अंकनों का अभाव है जो इस काल की अन्य प्रतिमाओं में होते है, दो नागफणा के आधार पर पद्मासन में तीर्थङ्कर बिराजित है, घुटने थोड़ी नीचे की ओर झुके हुए हैं। तीर्थङ्कर के दोनों ओर कायोत्सर्ग में दो तीर्थङ्कर छत्र युक्त, सप्तफणा के दोनों ओर पद्मासन में दो तीर्थकर पीठिका के मध्य में नवग्रह एवं दोनों छोर पर दो यक्षीयों के अंकन किए गए है। परिकर के ऊपरी भाग में स्तूपि खंडित हो चुकी है। ___. 1353 वै. सु. १३-श्री पार्श्व बिम्ब कारितं श्री~ग्रा. गच्छे श्री श्री चन्द्रसूरिभिः / प्रतिष्ठितं. (नाप (से. मी.) ऊँचाई - 8 लम्बाई - 8 चौड़ाई - 3.) 15. पार्श्वनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् 1374 (46) द्विपीठिका पर आसीन जिन पार्श्वनाथ प्रातिहार्ययुक्त है। प्रथम पीठिका पर सिंहासन के दोनों छोर पर यक्ष-यक्षी और द्वितीय पीठिका पर मध्य में धर्मचक्र एवं दोनों ओर नवग्रह व पीठिका के भूतल पर मध्य में सर्प का लाञ्छन अंकन किया गया है। संवत् 1374 वर्षे माघ सुदि 10 गुरौ उकेसीय वंशे साधु तिहुण सुत भीमसीह भा / डाकेनबाई खे( षे )न्द्र श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिम्ब का. प्रतिष्ठितं श्री परमानन्दसूरिभिः (नाप (से. मी.) ऊँचाई - 14 लम्बाई - 9 चौड़ाई -5.5.) 16. आदिनाथ - एकतीर्थी प्रतिमा - विक्रम संवत् 1391 (91) तीर्थङ्कर आदिनाथ प्रातिहार्य एवं द्विपीठिका युक्त, प्रथम पीठिका पर धर्मचक्र, नवग्रह एवं यक्ष-यक्षी, द्वितीय पीठिका के दोनों छोर पर श्रावक-श्राविका आदि का अंकन है। (सं. 1391 वर्षे प्रा. ज्ञा. श्रे. केलण भा. भोपल पु.--उभादेनलजी-पित्रो श्रेयसे श्री दि. बि. का. प्र.- श्री सर्वदेवसूरिभिः / ) (नाप (से. मी.) ऊँचाई - 11 लम्बाई - 6.5 चौड़ाई - 8.)