Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 01 Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाण बहुत उत्तम रीतिसे वर्णन कियाहै. जो मनुष्य जैन शाख तथा अभिधा लक्षणा व्यंजनातात्पर्य्यावृत्तिके मर्मज्ञ हैं उन लोकोंको मुनिराजश्री बुद्धिसागरजी रचित शास्त्र सिद्धान्तमे वो आस्वाद मिलेगा, की जिसका फल एक एक पदकी भावनासे अनेक कर्मकी निर्जरा है. मित्रगण ! ज्यादे क्या लिखे. अमारा मन तो इन पद रत्नको सुनकर सुखाब्धिमें मग्न होता है. तथा और लोक वैदिक धर्मावलंबी सुनते है तो चित्रकेसे लिखे होकर तथा कूद २ कर सुनते हैं. आहा! सत्यही शास्त्रोमे जंगम तीर्थ साधुओंको कहा है. श्लोक. साधूनां दर्शनंपुण्यं तीर्थभूताहि साधवः । तीर्थ फलति कालेन सद्यः साधुसमागमः ॥१॥ ह. न्याय व्याकरण साहित्याऽचार्य पं. श्यामसुन्दराचार्य वैश्य, के. बी. एस. एम. K. B. S. M. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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