Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 6
________________ बात, गीत, लीला, चरित्र, छंद, छप्पय, भावना, विनोद, कल्प, नाटक, धमाल, चौढालिया, चौमासिया, बारामासा, बटोई, बेलि, हिण्डोलना, चूनड़ी, सज्झाय, बाराखड़ी, भक्ति वंदना, पच्चीसी, बत्तीसी, पचासा, बाबनी, सतसई, सहस्त्रनाम, नामावलि, गुरुवावली, स्तवन, संबोधन, आदि नामों के अंतर्गत निबद्ध की गईं। इन विविध साहित्य रूपों में से किसका कब आरम्भ हुआ और किस प्रकार विकास एवं विस्तार हुआ यह शोध का रोचक विषय है। हिन्दी की जननी अपभ्रंश भाषा पर तो जैन कवियों का एकमात्र अधिकार रहा है। उन्होंने अपभ्रंश के माध्यम से हिन्दी के विकास में जो योग दिया, वह तो ऐसी कहानी है, जिस पर जितना लिखा जावे वही कम है। जैन कवियों ने 12-13 शताब्दी में छोटे-छोटे रास काव्य निबद्ध कर हिन्दी भाषा के पठन-पाठन को लोकप्रिय बनाने का पूरा प्रयास किया और उसमें वे पूरी तरह सफल हुए। उन्होंने जायसी जैसा महाकाव्य तो नहीं लिखा किन्तु संवत् 1354 में जिणदत्त चरित लिखकर प्रबन्ध काव्य लिखने की परम्परा को जन्म दिया। इसी तरह संवत् 1411 (सन्-1354) में ब्रजभाषा में प्रद्युम्न चरित निबद्ध करके प्रादेशिक भाषाओं को समृद्ध बनाने का महान उपक्रम किया। इससे हिन्दी का विकास होता ही गया और उसमें लिखने पढ़ने को राष्ट्रीय पांडित्य की मान्यता मिलने लगी। ___16वीं शताब्दी में बूचराज, छीहल, चतुरुमल, गौरवदास एवं ठक्कुरसी जैसे कवि हुए जिन्होंने अपनी लघु किन्तु सशक्त कृतियों से हिन्दी का भंडार भर दिया। छीहल की पंचसहेली गीत एवं बावली हिन्दी साहित्य के इतिहास में चर्चित कृतियों में रही हैं। संवत 1560 से 1600 तक की अर्धशती एक संधिकाल था। राजस्थान को छोड़कर प्रायः सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर मुस्लिम शासन था। अपभ्रंश साहित्य में सृजन का युग समाप्त हो रहा था और हिन्दी शनैः-शनैः उसका स्थान ले रही थी। जैन कवि हिन्दी की ओर विशेष आकृष्ट थे। राजस्थान में वे निर्भय होकर हिन्दी-राजस्थानी में कृतियाँ निबद्ध करने में लगे हुए थे। बूचराज, छीहल, चतुरूमल, एवं ठक्कुरसी सभी राजस्थानी कवि थे। इसके अतिरिक्त 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में हिन्दी में ब्रह्म जिनदास जैसे महाकवि हुए जिन्होंने राजस्थानी भाषा में 70 से भी अधिक रास काव्य लिखकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। एक कवि द्वारा राजस्थानी में इतने अधिक काव्य प्रथम बार लिखे गए और कवि के प्रभाव से सारा बागड़ प्रदेश हिन्दीमय हो गया। और उसके पश्चात् जैन सन्तों के रूप में नये-नये कवि होते गए और अपनी रचनाओं द्वारा माँ भारती का भण्डार भरते गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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