Book Title: Bhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Author(s): Usha Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 13
________________ और उसका अध्ययन कर अपने वैदुष्यपूर्ण अध्यवसाय द्वारा उसका सर्वांग आलोड़न करते हुए 'भैया भगवतीदास और उनका साहित्य' नाम से सुन्दर ग्रंथ लिखा । जिससे भैया जी की काव्य कला साकार हुई एवं आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें मानद 'डाक्टर' की उपाधि भी प्राप्त हुई। अब उक्त शोध ग्रंथ डॉ० उषा जैन द्वारा संपादित होकर प्रकाशित है। जिसमें 7 अध्याय हैं- जिनमें भैया जी की बहुआयामी सभी कृतियों की विशेषताओं को भली भांति विवेचना कर उजागर किया गया है। इस शोध ग्रंथ को लिखकर श्रीमती डॉ० जैन ने वास्तव में एक श्रमसाध्य महत्वपूर्ण तथा अभिनंदनीय कार्य किया है- जिसके लिये उन्हें जितना भी धन्यवाद दिया जाये कम है। डॉ. जैन ने अपने ग्रंथ के प्रथम अध्याय में कविवर भैया जी का जीवनवृत्त लिख कर उनका विस्तृत परिचय दिया है। द्वितीय अध्याय में देश में तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक परिस्थितियों का उल्लेख किया है। तृतीय अध्याय में उनकी सभी कृतियों का ऊहापोह पूर्वक विस्तृत विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में भाव पक्ष के अंतर्गत शांत रस, भक्ति, वीर, अद्भुतादि रसों का विश्लेषण है। पंचम में कला पक्ष के अंतर्गत अलंकार छन्द, भाषा एवं लोकोक्तियों का कृति में यथास्थान वर्णन है । षष्ठ अध्याय में दार्शनिक विवेचना है - जिसमें सृष्टि कर्तृव्य, कर्म सिद्धांत, गुणस्थान, सम्यक्त्व, मिथ्यात्वादि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। सप्तभंगी न्याय भी इसी में सम्मिलित है। सप्तम अध्याय में भैयाश्री के काव्य का मूल्यांकन करते हुए उसका महत्व एवं उपयोगिता दर्शायी गयी है। इसी संदर्भ में ब्रह्मविलास ग्रंथ का पारायण करते हुए डॉ० जैन ने प्रसंगानुसार अनेक पद्यों का चयन करते हुए अपने शोध प्रबंध में समावेश किया है- जो भैया जी की प्रतिभा एवं भावाभिव्यक्ति को उजागर करने के लिए आवश्यक था । इससे कवि की अध्यात्मरसिकता, पांडित्य, दीर्घदर्शिता, सहृदयता, निरभिमानता एवं महानता का सहज ही आभास हो सकता है। ग्रंथ में कवि ने स्वयं को जिस पद्य द्वारा परिचित कराया है वह वस्तुतः उनकी विनम्र वृत्ति दर्शाने हेतु पर्याप्त है- वे लिखते हैं "एहो, बुद्धिवंत नर हँसो जिन मोहि कोऊ बाल ख्याल लीनो तुम लीजियो सुधार के । मैं न पढ्यो पिंगल न देख्यो छंदकोश कोऊ नाममाला नाम को पढ्यो नहीं विचार के । (ix) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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