Book Title: Bhagwat Rachna kal Sambandh me Jain Sahitya ke Kuch Praman Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_6_001689.pdf View full book textPage 4
________________ भागवत के रचना काल के सन्दर्भ में जैन साहित्य के कुछ प्रमाण : 145 लोगाययं सद्वितंतं माढरं पुराणं वागरणं भागवं पायंजली पुस्सदेवयं लेहं गणिअं सउगरूअं नाडयाई अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि अ वेआ संगोवंगा।" नन्दीसूत्र मलयगिरि की टीका का मूलपाठ, आग सुत्ताणि सटीक भाग 30, सं. मुनिदीपरत्नसागर - आगम श्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद पृ.१८७ 2. “से कि तं मिच्छसुतं? मिच्छसुत्तं जं इमं अण्णणिएहि मिच्छद्दिट्टिएहि सच्छंदबुद्धि - मतिवियप्पियं, तं जहा-भारहं, रामायणं, भीमासुरक्खं कोडल्लयं सगभदियाओं खोडमुहं कप्यासियं नामसुहमं कणगसत्तरी वइसेसियं बुद्धवयणं वेसितं कविलं लोगायतं सदितंतं माढरं पुराणं वागरणं णाडगादी अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेदा संगोवंगा।" नन्दीसूत्र चूर्णि का मूलपाठ पृ. 49- प्राकृत टेक्स्ट सोसाईटी, अहमदाबाद 1966 3. “से किं तं मिच्छसुतं? मिच्छसुतं जं इमं अण्णणिएहि मिच्छद्दिडिएहि सच्छंदबुद्धि - मतिवियप्पियं, तं जहा-भारह, रामायणं, हंभीमासुरक्खं कोडाल्लयं सगभदियाओ खोडमुहं कप्पासियं नामसुहुमं कणगसत्तरी वइसेसियं बुद्धक्यणं वेसितं कविलं लोगायतं सद्वितंतं माढरं पुराणं वागरणं णाडगादी अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेदा संगोवंगा।" नन्दीसूत्र को हरिभद्रीय टीका का मूलपाठ - पृ. 64, प्राकृत टेक्स्ट सोसाईटी, अहमदाबाद 1966 4, कल्याण - भागवत अंक * गीताप्रेस गोरखपुर पृ. 56-59 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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