Book Title: Bhagwan Mahavir ke Siddhanto ki Aaj ke Yuga me Upayogita
Author(s): Rina Jaroli
Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf

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Page 1
________________ भगवान महावीर के सिध्धान्तों की आज के युग में उपयोगिता रीना जारोली एम.एस.सी. (रसायन) कालजयी महावीर ने विचारों का ऊर्ध्वारोहण कर वस्तु, व्यक्ति एवम् जगत् की मौलिक सत्ता को साक्षात् कर लिया था। अपने केवलज्ञान (पूर्णज्ञान) से साक्षात् किये गये सत्य एवं तथ्य वास्तविक, जीवन-परक एवं निरन्तर गति प्रगतिशील है। इस द्रष्टि से गत ढाई हजार वर्षों की दीर्घ अवधि में महामानव महावीर ही अविकल्प एवं नित्य आधुनिक व्यक्ति है। उनके सिद्धान्त 'मोर्डन' रैडिकल: 'डायनैमिक' एवं अपटूडेट' है। शताब्दियों की शोध-यात्रा भी उनके सिद्धांतो को धूमिल, प्राचीन एवं शिथिल नहीं कर सकती। वस्तुत: हम प्रयत्न करते हैं महावीर को अपने से जोडनें की, नकि जुड़ना चाहते हैं महावीर से। केवलज्ञान (Absolute Knowledge) का अर्थ है पूर्ण ज्ञान की अवस्था। निरन्तर ज्ञानात्मक भाव में जीना ही केवलज्ञानी के लिए अनिवार्य है। महावीर सजगता एवं अप्रमाद की प्रतिमूर्ति थे जो हर क्षण अपने भीतर उठ रहे भाव, रूप, विचार, क्रिया-प्रतिक्रिया के प्रति सचेत रहे तथा अन्य वस्तु, व्यक्ति एवं जगत् में घटित हो रहे भावों, विचारों, रुपों के प्रति भी सचेत रहे। अन्य शब्दों में निज स्वरूप एवं वस्तु स्वरुप के प्रति जागरूक महावीर के सिद्धान्त सार्वजनिक, सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। महावीर का ज्ञान सतही नहीं था। उन्होंने ऐन्द्रिक-मानसिक अवबोधन (Perception) से परे एकाग्र एवं आत्मानुभव-मूलक ज्ञान से यथार्थ को जाना। केवली घेने की साधना ही 'माडर्निटी', को सही रुप में जीने की साधना है। महावीर के सिद्धान्तों की इसी कारण आज के युग में तत्कालीन युग से भी अधिक उपयोगिता है। आधुनिक युग तनाव, टकराव, अशांति, शीतयुध्ध, दमित जीवनमूल्य, अस्थिरता, संघर्ष एवं विषमता का युग है। व्यक्ति स्वयं में भीड़ व भीड़ में अकेला है। क्रान्तदर्शी महावीर ने समाज की ज़ड़ता, अन्धश्रद्धा, खोखलेपन पर चोट की तो व्यक्ति को प्रमाद एवं विकार से मुक्त करने के लिए झंझोड़ा भी। आइये। हम महावीर के सिद्धान्तों को वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में देखें-परखें। अहिंसा की बांसुरी:- विश्व शांति के स्वर निस्संदेह दो विश्वयुद्धों के परिणाम देख कोई भी देश युद्ध नहीं चाहता परन्तु एक दूसरे पर अतिक्रमण का भय और विध्वंसक शस्त्रों का निर्माण अशांतिका मूल कारण बना हुआ है। "लीग ऑफ नेशन्स" एवं तदनन्तर "संयुक्त राष्ट्र संघ" के प्रयासों के बावजूद भी स्थिति आशाप्रद नहीं है। असुरक्षा की अनुभूति के कारण शीतयुद्ध की दीर्घ अवधि से हमें गुजरना पड़ रहा है। हिंसा, टकराव, तनाव से मुक्ति हम पा सकते हैं अहिंसा से मात्र अहिंसा से। महावीर के सिद्धान्तों में अहिंसा मूल सिद्धान्त है। श्रावक के अणुव्रतों एवं साधक (श्रमण) के महाव्रतों में इसका प्रथम स्थान है। किसी भी जीव को मारना, सताना, किसी का शोषण करना, किसी की स्वतंत्रता का हनन करना हिंसा है। वर्तमान युग में श्रमिकों के प्रति सहानुभूति रखने पर जोर है तो महावीर ने 'अईभार' (अतिभार) एवं 'मत्तपाण विच्छेए' (भोजन-पानी से दूर करना) जैसे अतिचारों में इन्हें हिंसा ही माना है। 'एगे आया अर्थात् स्वरुप द्रष्टि से आत्मा एक है कहकर महावीर ने विश्वबन्धुत्व पर जोर दिया है। 'स्व' का इतना विस्तार करना कि __ मृत्यु के समय संत के दर्शन, संत का उपदेश और संत का सानिध्य तो परम् औषधि रुप होता है। २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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