Book Title: Bhagwan Mahavir ke Jivan Sutra Author(s): Shreechand Surana Publisher: Z_Sumanmuni_Padmamaharshi_Granth_012027.pdf View full book textPage 3
________________ दोष लग रहा है । भन्ते ! क्या मेरा कथन सत्य है, या आनन्द श्रावक का कथन सत्य है ? भगवान् महावीर कहते हैं- “गौतम ! आनन्द श्रावक का कथन सत्य है । तुमने उसके ज्ञान का अपलाप करके उसकी अवहेलना की है । अतः जाओ उसे खमाओ । " गौतम तुरंत जाते हैं और आनन्द श्रावक को खमाते हैं । अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप करते हैं । भगवान् महावीर सत्य के पक्षधर थे। एक श्रावक के सत्य कथन का अपलाप करने पर अपने प्रमुख शिष्य गणधर को भी उसके पास भेजकर क्षमा माँगने को कहा। यह घटना बताती है, सत्य के सामने कोई छोटा-बड़ा नहीं । सत्य ही महान् है । सत्य ही भगवान है । सच्चखु भवं ' जो सत्य की रक्षा करता है वह स्वयं सुरक्षित रहता है, सत्य को भी भय नहीं । उपनिषद् का प्रवक्ता ऋषि कहता है - सत्यं वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि, तन्मामवतु तद्वक्तारमवतु मैं सत्य बोलूंगा। मैं न्याय युक्त वाणी बोलूंगा । वह सत्य मेरी और बोलने / सुनने वालों की रक्षा करे । सत्य समस्त जगत् को अभय करे । सत्य भी मधुर बोलो कहते हैं सत्य कड़वा होता है। सुनने में, बोलने में सत्य कभी-कभी कठोर व अप्रिय लगता है। इसलिए भगवान् महावीर सत्य को मानते हुए भी सत्य के साथ माधुर्य का योग करते हैं । भगवान् कहते हैं - भासियव्वं हियं सच्च - सत्य तो बोलो, परन्तु वह हितकारी हो और प्रिय हो, मधुर हो । सत्य सुनकर किसी का हृदय दुखी न हो, किसी के मन पर आघात नहीं लगे। इस बात का भी पूरा ध्यान रखना है । १. प्रश्न व्याकरण २ - Jain Education International २. ऐतरेय उपनिषद् १/३ | भगवान् महावीर के जीवन सूत्र जैन संस्कृति का आलोक एक तरफ प्रभु सत्य के पूर्ण पक्षधर हैं तो साथ ही लोक नीति व लोक व्यवहार को भी महत्व देकर चलते हैं । इसलिए सत्य के साथ लोक नीति को जोड़ने की बात कहते हैं - सच्चं पि होइ अलियं जं पर पीडाकरं वयणं । ४ जिस सत्य वचन को सुनकर किसी के हृदय पर चोट लगती है, दूसरों को पीड़ा होती है, ऐसा सत्य वचन असत्य की कोटि में है। वह सत्य, सत्य नहीं जो दूसरों के हृदयों पर घाव कर दे । ओए तहीयं फरुसं वियाणे - जो सत्य कठोर हो, जिसके सुनने से सुनने वाले का मन खिन्न व दुखी हो जाता है, ऐसा सत्य वचन मत बोलो । भगवान् महावीर का प्रमुख श्रावक है- महाशतक । अपनी पौषधशाला में बैठा है, जीवन की अन्तिम आराधना करता है, उसे अवधि ज्ञान हो जाता है। अपनी आराधना में लीन है तभी उसकी पत्नी रेवती उसके साथ अत्यन्त अभद्र दुर्व्यवहार करती है । बड़े ही अश्लील वचन बोलती है, जिन्हें सुनते, सहते महाशतक का धैर्य जबाव दे जाता है । तब वह उससे कहता है रेवती ! तू इस प्रकार के दुराचरण के कारण घोर रोगों का शिकार होगी और अन्त में मरकर प्रथम नरक में जायेगी । वहाँ भयंकर यातनाएँ भोगेगी। पति का यह वचन सुनकर रेवती उद्भ्रांत हो जाती है - पति ने मुझे शाप दे दिया । इस प्रकार वह भयभीत होकर आकुल-व्याकुल होकर इधर-उधर भागती है । आकुलता से छटपटाती है। छाती पीटती है। - दूसरे दिन प्रातः भगवान् महावीर गणधर गौतम को कहते हैं गौतम ! तुम जाओ और श्रावक महाशतक से कहो, उसने अपनी भार्या रेवती को पौषध में जो कठोर कर्कश वचन कहे हैं, उन्हें सुनकर उसका हृदय व्यथित हो उठा है। भले ही सत्य वचन हो, परन्तु श्रावक को इतना ३. उत्तराध्ययन १६/२३ For Private & Personal Use Only ४. प्रश्न व्याकरण २ ५. सूत्र १४/२१ E www.jainelibrary.orgPage Navigation
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