Book Title: Bhagvan Mahavira Trilok Guru
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf

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Page 5
________________ न हो! । वास्तव में तीर्थकरों के जीवन के ये सब अतिशय / विशेष परिस्थितियों कोई चमत्कार व जादू-टोना नहीं था किन्तु उनकी आत्मा से दूर हुए कर्म | के कारण प्रादुर्भाव हुयी आत्मशक्ति या विद्युचुंबकीय शक्ति का प्रभाव था ऐसा निकट के भविष्य में यदि कोई विज्ञानी द्वारा सिद्ध हो तो आश्चर्य की बात नहीं होगी । इन्द्रभूति गौतम को भगवान महावीरस्वामी के पास से आत्मा के अस्तित्व के बारे में अपनी अमूर्त अरूपी शंका का समाधान प्राप्त होते ही उन्होंने भगवान माहवीरस्वामी को अपने गुरु को रूप में स्वीकार | किया और अपना संपूर्ण जीवन गुरुचरण में समर्पित करके " पूजामूलं गुरोः पदौ " पद को चरितार्थ किया और जब श्रमण भगवान महावीरस्वामी इन्द्रभूति आदि ग्यारह ब्राह्मण पंडितों को दीक्षा देते हैं उसी समय भगवान स्वयं इन्द्र के हाथ में रखे हुए रत्नजड़ित सुवर्ण थाल में से वास चूर्ण लेकर सभी गणधरों के मस्तिष्क पर डालकर आशीर्वाद देते हैं । उसी आशीर्वाद द्वारा अपने केवलज्ञान स्वरूप प्रकाश का अंश शिष्यों में संक्रमित करते हैं । उससे श्रमण भगवान महावीरस्वामी द्वारा दिये गये केवल तीन पद (1) उप्पन्ने इ वा, (2) विगमे इ वा, (3) धुवे इ वा (जिनको जैन परिभाषा में |त्रिपदी कही जाती है) के आधार पर संपूर्ण द्वादशांगी व चौदह पूर्वो जैसे महान धर्मग्रंथों की रचना करते हैं । इस प्रकार गुरु के शब्द स्वरूप त्रिपदी उनके लिये मंत्र स्वरूप होती है और ऐसे मंत्रमूलं " गुरोर्वाक्यं पद " चरितार्त होता है । दीक्षा के बाद प्रायः 30 साल तक उनके प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीरस्वामी की सेवा शुश्रुषा, भक्ति-वैयावच्च की और उनके प्रभाव से श्री गौतमस्वामी को विशिष्ट लब्धियाँ । शक्तियाँ प्राप्त हुयीं । जिसके कारण उनके नाम के आगे अनंतलब्धिनिधान ऐसा सार्थक विशेषण रखा जाता है । तथापि उनको केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है । उसका कारण केवल यही था कि उनको भगवान महावीर के प्रति अनन्य राग था । | उसको दूर करने के लिये भगवान महावीर अपने निर्वाण समय की रात को इन्द्रभूति गौतम को पास में आये हुये गाँव में स्थित देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध करने के लिये भेज देते हैं । उसी ब्राह्मण को प्रतिबोध करके वापिस आते हुये इन्द्रभूति गौतम को रास्ते में प्रभु महावीर के निर्वाण के 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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