Book Title: Bhagavati Sutra me Paramanovigyan evam Parashaktiyo ke Tattva Author(s): Saubhagyamuni Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 4
________________ ORRORSCORPIO DOG PRODOORCHD सट मिलता है जो सचमुच आश्चर्यजनक है । गोशालक इस प्रकरण में "उत्कारिका" रूप विशिष्ट पराएक तपस्वी वेश्यायन को देखकर उसे तिर- शक्ति विचारणीय विषय है। स्कृत करता है, यह तपस्वी गोशालक पर कुपित तीव्रातितीव्र गमन पराशक्ति होता है और उस पर एक ऐसा तेज फेंकता है जो भगवती सत्र के बीसवें शतक के हवं उद्देशकः (Vy ज्वलनशील है। गोशालक जल ही जाता उस तेज से में चारण मुनियों की तीव्रगति का विषय व्याख्या- र किन्तु भगवान् महावीर उस पर करुणा कर तत्काल यित हुआ है । विद्या चारण एवं जंघा चारण दो शीतल तेज प्रकट करते हैं और वह शीतल तेज उस तरह के चारण मनि होते हैं और उनकी गगन- र उष्ण तेज को नष्ट कर देता है। गोशालक बच गामिनी शक्ति आश्चर्यजनक होती है वे एक चुटकी जाता है। शास्त्रीय भाषा में 'उष्ण तेज को लगाने जितने थोडे से समय में जम्बुद्वीप के चारों IIKE तेजोलेश्या कहा है तथा शीतल तेज को 'शीतल तरफ चक्कर लगा आते हैं । यह अद्भुत पराशक्ति तेजोलेश्या" कहा है। भी मुनि को विशेष तप साधना से ही प्राप्त होती प्रस्तुत प्रसंग में 'तेजोलेश्या" जिसे कहा गया है। ऐसा विधान है। वह तपस्वी के शरीर से बाहर प्रकट हुई है, इसी इस तरह भगवती सूत्र में परामनोविज्ञान और | तरह 'शीत तेजोलेश्या' भी भगवान् महावीर के पराशक्तियों के अनेक उल्लेख उपस्थित हैं। यद्यपि देह से बाहर आई है। ऐसे उल्लेख प्रथम दृष्टया आश्चर्यजनक तथा अतिचेतना की यह तेजोमय पराशक्ति नितान्त रंजित प्रतीत होते हैं किन्तु यह अपनी स्थूलग्राही है। अद्भुत और आश्चर्यजनक है। इसी आख्यान में दृष्टि का ही परिणाम है । जीवन में निहित अनन्त तेजस्वी पराशक्ति "तेजोलेश्या" को अपने में उप- सम्भावनाओं के सन्दर्भ में यदि ये तथ्य देखे जाएँ Kलब्ध करने का उपाय भी प्राप्त होता है। उपाय तो ये कदापि असम्भव नहीं होंगे। आज जीवन की LD Milf स्वरूप जो बताया गया वह एक उग्र किन्तु कठोर पराशक्तियों को तर्कप्रधान विज्ञान ने न केवल तप है और उसके साथ सूर्य ताप को निरन्तर स्वीकार किया इस क्षेत्र को शोध का विषय भी सहते हुए छह माह साधना करने का विधान है। बनाया है। सूत्रगत यह आख्यान इतना तो स्पष्ट करता ही है अभी अमेरिका आदि अनेक यूरोपियन देशों ने कि चेतना एक ऐसा शक्ति का केन्द्र है जिसमें शक्ति और भारत में पराशक्तियों पर अनुसन्धान चल रहे का अपार कोष निहित है उन शक्तियों को विशिष्ट हैं। श्री अम्बागुरु शोध संस्थान ने भी अपना एक प्रयोगों से प्रकट भी किया जा सकता है। उपक्रम इस दिशा में स्थापित किया है । परा-क्षेत्र एक में अनेक रूप पराशक्ति में ज्यों-ज्यों वैज्ञानिकों की पैठ हो रही है, त्यों-त्यों भ० महावीर के सामने एक प्रश्न आया कि अनेक अज्ञात रहस्य हस्तामलकवत् निःसंशय और क्या चौदह पूर्वधर मनि एक घडे में से हजार घड़े प्रत्यक्ष होते जा रहे हैं। दिखा सकते हैं ? समाधान देते हुए भ० महावीर ने यहाँ हमने मात्र भगवती सूत्र से प्राप्त कतिपय कहा कि हाँ ऐसा वे कर सकते हैं। जब प्रतिप्रश्न परा-प्रसंग उपस्थित किये हैं, इसी ग्रन्थ में और हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है, तो समाधान था भी अनेक परा-संसूचक वृत्त उपस्थित हैं, ऐसे ही कि चौदह पूर्वधर "उत्कारिका भेद" द्वारा भिन्न जैन वाङमय के सूत्रों ग्रन्थों जीवन वृत्तों में और | अनन्त द्रव्यों को प्राप्त करते हैं। और उनसे ही वे भी अनेक घटनाएँ उल्लिखित हैं । आर्यों की आत्मा | ऐसा कर सकते हैं। सम्बन्धी विचार पद्धति में आत्मा को अनन्त शक्ति १ भगवती सूत्र शतक ५ उद्देशक ४ ३८१ २ भगवती सूत्र शतक ५ उद्देशक ४ पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 550 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थReso Jain Education International ForevetaDersonalise Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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