Book Title: Bhagavati Sutra me Paramanovigyan evam Parashaktiyo ke Tattva Author(s): Saubhagyamuni Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 3
________________ % E SIYA त्यों बनी हुई है। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में वैज्ञा- भगवान् महावीर उस समय चम्पा नगर के || निकों ने जितना अध्ययन किया उससे अनेक ऐसे बाहर पूर्णभद्र उद्यान में विराजित थे । उन्होंने ॥ नये प्रश्न खड़े हो गये कि जिनका समाधान मिलना वहीं उदायन के विचारों को जान लिया और वहाँ और दुश्वार हो गया है । से लम्बे भूखण्ड को पार कर वीतिभय पधारे। उदाअब तक प्राप्त पुनर्जन्म के प्रकरणों में अधिकांश यन ने भगवान् महावीर का बड़ा सम्मान किया, ऐसे ही प्रकरण हैं जिनके पात्र बालक या बालिका उनका उपदेश सुना और उनके पास दीक्षित हो हैं। जो बड़ी उम्र के नहीं हो गये हैं ऐसे बच्चों गया, मूनि बन गया। में पूर्व-जन्म की स्मृति जन्म से ही सतत बनो रही, प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्ति के विचारों को fil अभिव्यक्ति का सामर्थ्य आने पर उसने प्रकट की। जानने-समझने का प्रयत्न प्रायः करता ही है। कुछ अभी ऐसा उदाहरण एक भी नहीं मिल पाया कि ऐसे संकेत भी मानव पकड़ लेता है जिससे सामने कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति अपने मानस क्रम को वाले या दूरस्थ व्यक्ति के विचारों का वह जान ।। विकसित कर पूर्व-जन्म स्मृति का पात्र बना हो। सके और कई बार उसका जाना हुआ सच भी । यहाँ सुदर्शन का जो प्रसंग उपस्थित किया or सिद्ध होता देखा गया है तो इससे यह तो सिद्ध है ।। स. गया है इसकी यह विशेषता है कि यह एक बड़ो कि व्यक्ति का मन परभाव ज्ञप्ति की एक शक्ति उम्र का गृहस्थ था। साथ ही पहले पूर्व-जन्म स्मृति ___ अपने आप में रखता अवश्य है। यह एक अलग बात || से शून्य था किन्तु किसी विशेष अवसर पर वह है कि कुछ व्यक्तियों में यह शक्ति प्रसुप्त रहती है। अपना मानस क्रम इतना विकसित कर पाया कि तो कुछ व्यक्ति इसे जाग्रत कर लेते हैं। मानस वह उस उम्र में भी पूर्व जन्म की स्मति का पात्र शक्ति जागरण के भी अनेक स्तर हैं। कुछ अमुक वन गया। स्तर तक ही अपने में जागृति पा सकते हैं, तो कुछ - यद्यपि इस घटना का शास्त्रोक्त उल्लेख के ऐसे भी हो सकते हैं जिनमें पूर्ण जागृति विक- 10 अलावा कोई चिन्ह उपस्थित नहीं है फिर भी इस सित हो चुकी हो । परभाव ज्ञप्ति के हजारों उदाहघटना से इतना तो संसूचन हो हो जाता है कि रण प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में पाये जाते हैं, उनकी मानव का मानस क्रम यदि विकसित हो सके तो सम्यक् समीक्षा होनी चाहिए। उसमें अनेकानेक आश्चर्यजनक संजप्तियों की यह निश्चित तथ्य है कि मानव मन में निश्चय अपार सम्भावनाएँ उपलब्ध हैं । ही ऐसी पराशक्तियाँ विद्यमान हैं जो सामान्यतया परभाव ज्ञप्ति कल्पनातीत हैं। ग्रन्थों आख्यानों से इस विषय की बहुत दूर रहते हुए व्यक्ति के विचारों को जान जितनी भी सामग्री उपलब्ध हैं उस सभी का व्यवलेना मानस की एक ऐसी प्रतिभा है जिस पर आम स्थित संकलन होकर उनकी गम्भीर समीक्षा हो इस व्यक्ति प्रायः विश्वास नहीं किया करते किन्तु यह तो इस विषय में अनेक अनुद्घाटित तथ्य प्रकाशित एक ऐसा सत्य है जो युगों-युगों से प्रकट होता रहा हो सकते हैं। है। वीतिभय नगर का राजा उदायन अपनी पौषध ज्वलनशील पराशक्तिआराधना में स्थित है और अपने भाव बनाता है श्रीमद भगवती सूत्र के गोशालक आख्यान में कि भगवान महावीर प्रभु यहाँ पधारें तो मैं उनकी तेजोलेश्या का एक ऐसा अद्भुत प्रसंग है जिसे पढ़उपासना करूं। कर चेतना की एक ऐसी पराशक्ति का परिचय १ भगवती सूत्र शतक १३ उद्देशक ६ ३८० Os पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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