Book Title: Bauddh Dharm Darshan Sanskruti aur Kala
Author(s): Dharmchand Jain, Shweta Jain
Publisher: Bauddh Adhyayan Kendra
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206 बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला
28. ऋतुर्व्यतीतः परिवर्तते पुनः क्षयं
29. एकमन्तं निसिन्नो खो आयस्मा
30. एथ तुम्हे कालामा, मा अनुरसवेन
31. एवमेसा कसी कट्ठा
32. एवं पस्सं, भिक्खवे, सुतवा
33. एवं पियो पृथु अत्ता परेसं, तस्मा न हिंसे
34. औरों को हंसते देखो
35.
कम्मस्सका, माणव, सत्ता कम्मदायदा कम्मुना वत्तति लोको
36.
37. कल्याणमित्तो कल्याणसहायो, कल्याण सम्पवङ्को
38. कामं दृष्टा मया सर्वा
39. काले गाव : प्रसूयन्ते नार्यश्च
40. कृपणं बत थूथलालसो महतो व्याधभयात्
41. चक्षुर्विज्ञानसमंङ्गी नीलं विजानाति
42. चन्दनं तगरं वा पि उप्पलं अथ
43. चित्तनदी नामोभयतो वाहिनी वहति 44. चेतना चेतयित्वा च कर्मोक्तं
45. जायेदस्तं मघवन्त्सेदु योनिस्तदितवा 46. तं खो पन ते एतं पापकम्म
47. तं गौरवं बुद्धगतं चकर्ष भार्यानुरागः 48. तदेवमकृताकृताभ्यागमविनाशदोषप्रसंङ्ग 49. त्रिवर्गसेवा नृप यत्तु कृत्सनतः परो मनुष्यार्थं 50. तस्मा सक्खिभावत्थं पठमं अत्तान
51. दीपो यथा निर्वृत्तिमभ्युपेतो नैवावनिं
52. दुःख का करने सत्य निदान 53. दुर्लभं शान्तमजरं
54. दुष्कालेऽपि कलाव सज्जनरुचौ 55. द्वे मे भिक्खवे, अन्ता पब्बजितेन 56. धनिय, त्वं कुल्लं बन्धित्वा, महिं तरित्वा 57. न अत्तहेतु न परस्स हेतु न पुत्तमिच्छे 58. न खो सुखेन सुखं अधिगन्तब्बं 59. न जच्चा वसलो होति
60. न जातु कामः
61. नत्थि रागसमो अग्गि
621 नत्थि लोके रहो नाम
63.
न देहो न जीवात्मा नेन्द्रियाणि
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