Book Title: Bankidasri Khyat Author(s): Narottamdas Swami Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir View full book textPage 5
________________ प्रधान सम्पादकीय वक्तव्य चारण-कवियो का हमारे इतिहास में विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन कवियो ने अपनी प्रोजमई वाणी से सदा ही हमारा मार्ग-प्रदर्शन किया है। चारणो में हजारो कुशल साहित्यकार हो गये है. जिन्होने भिन्न-भिन्न विषयो पर रचना की है। चारणो का प्रसार मुख्यत राजस्थान, मध्यभारत और गुजरात में हुआ है और इन्ही देशो में चारण-साहित्य भी विशेष उपलब्ध होता है। अपनी काव्य-प्रतिभा और उज्ज्वल चरित्र से चारण हमारी जनता में आदरणीय रहे हैं और समय-समय पर देश-सेवा में भी अद्भुत् उदाहरण प्रस्तुत करते रहे है । महाकवि दुरसा आढा, ईसरदास बारहठ, वाकीदास, मुरारीदान, महाकवि सूर्यमल, कविराजा श्यामलदास और केसरीसिंह बारहठ आदि हमारे देश के प्रमुख चारण साहित्यकार माने जाते है। बाकीदास हमारे देश के एक महान कवि और इतिहासकार हो गये है। अपनी काव्य-प्रतिभा से ही उन्होने एक निर्धन चारण-कुल में जन्म लेकर जोधपुर के राज्य-दरबार में सर्वोच्च सम्माननीय आसन प्राप्त किया था। महाकवि बाकीदास की काव्यात्मक रचनाएँ बाकीदास-प्रन्थावली के नाम से तीन भागो में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हो चुकी हैं और इनके देखने पर कवि के काव्य-कौशल की सराहना करनी पडती है । राजस्थान के निष्प्राण नरेशो ने ईस्ट इन्डिया कम्पनी की अधीनता बिना ही युद्ध के स्वीकार कर ली थी। बाकीदास एक राष्ट्रीय विचारो के कवि थे और इसलिये उन्होने अपनी रचनाओ में राजस्थानी नरेशो को अग्रेजी शासन स्वीकार करने के कारण प्रताडित किया था। "आयो अगरेज मुलकरे ऊपर" शीर्पक महाकवि का गीत राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध हो गया है और हाल ही में हुई खोज द्वारा महाकवि वाकीदास की अन्य राष्ट्रीय रचनाओ की जानकारी भी मिली है। कवि होने के साथ ही बाकीदास एक इतिहासकार भी थे। प्राचीन काल में काव्यलेखन इतिहास-लेखन से भिन्न नही समझा जाता था। यही कारण है कि प्राचीन काल के कई कवि इतिहासकार भी माने जाते है और कई इतिहास-ग्रन्थ पद्य में ही मिलते है। महाकवि सूर्यमल रचित "वशभास्कर" नामक ऐतिहासिक काव्य-ग्रन्थ इस कथन का एक अच्छा उदाहरण है। ___महाकवि बाकीदास की इतिहास-विषयक कृति "वाकीदासरी ख्यात" राजस्थानी गद्य में लिखी गई है । राजस्थान का पूर्ण क्रमिक इतिहास तैयार करने में यह रचना एक आधार-ग्रन्थ के रूप में महायक हो सकती है । महाकवि बाकीदास को इतिहास का अच्छा ज्ञान था और समय-समय पर वे अपनी जानकारी को सक्षिप्त विवरण के रूप में लिपिवद्ध करते रहे थे। राजस्थान के सुप्रसिद्ध विद्वान श्रीयुत् प० नरोत्तमदासजी स्वामी ने "वाकीदासरीPage Navigation
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