Book Title: Bandh Pamokkho Tuzjna Ajjhatthev
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf

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Page 18
________________ वह क्षितिज, जो केवल दिखलायी तो पड़ता है, किन्तु वास्तव में जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता--मानव-जीवन का प्रादर्श इस प्रकार का नहीं है। भारत का अध्यात्मवादी-दर्शन मानव-जीवन के प्रादर्श को भटकने की वस्तु नहीं मानता। वह तो जीवन के यथार्थ जागरण का एक मूलभूत तत्त्व है। उसे पकड़ा जा सकता है, उसे ग्रहण किया जा सकता है और उसे जीवन के धरातल पर शत-प्रतिशत उतारा जा सकता है। मोक्ष केवल अादर्श ही नहीं, बल्कि वह जीवन का एक यथार्थ तथ्य है। यदि मोक्ष केवल आदर्श ही होता, यथार्थ न होता, तो उसके लिए साधन और साधना का कयन ही व्यर्थ होता। मोक्ष अदृष्ट दैवी हाथों में रहनेवाली वस्तु नहीं है, जिसे मनुष्य प्रथम तो अपने जीवन में प्राप्त ही न कर सके अथवा प्राप्त करे भी तो रोने-धोने, हाथ पसारने और दया की भीख मांगने पर, अन्यथा नहीं । जैन-दर्शन में सष्ट रूप से यह कहा गया है कि साधक ! मुक्ति किसी दूसरे के हाथों की चीज नहीं है। और न वह केवल कल्पना एवं स्वप्नलोक की ही वस्तु है, बल्कि वह यथार्थ की चीज है, जिसके लिए प्रयल और साधना की जा सकती है तथा जिसे सतत अभ्यास के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। जैन-दर्शन ने स्पष्ट शब्दों में यह उद्घोषणा की है कि प्रत्येक साधक के अपने ही हाथों में मुक्ति को अधिगत करने का उपाय एवं साधन है। और वह साधन क्या है? वह है सन्या-दर्शन, सम्यक-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र । इन तीनों का समुचित समग्र रूपही मुक्ति का वास्तविक उपाय एवं साधन है। कुछ विचारक भारत के अध्यात्मवादी-दर्शन को निराशावादी-दर्शन कहते हैं । भारत का अध्यात्मवादी-दर्शन निराशावादी क्यों है ? इस प्रश्न के उत्तर में उनका कहना है कि वह वैराग्य की बात करता है, वह संसार से भागने की बात करता है, वह दुःख और क्लंश की बात करता है। परन्तु, वैराग्यवाद और दुःखवाद के कारण उसे निराशावादी-दर्शन कहना, कहाँ तक उचित है ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। मैं इस तथ्य को स्वीकार करता हूँ कि अवश्य ही अध्यात्मवादी-दर्शन ने दुःख, क्लेश और बन्धन की बात की है। वैराग्य-रस से प्राप्लावित कुछ जीवन-गाथाएँ इस प्रकार की मिलती भी है, जिनके आधार पर अन्य विचारकों को भारत के अध्यात्मवादी-दर्शन को निराशावादी-दर्शन कहने का दुस्साहस करना पड़ा। किन्तु, वस्तु-स्थिति का सम्यक-विचार करने पर ज्ञात होता है कि यह केवल विचारकों का मतिभ्रममात्र है। भारतीय अध्यात्मवादी-दर्शन का विकास अवश्य ही दुःख एवं क्लेश के मूल में से हुआ है, किन्तु मैं यह कहता हूँ कि भारतीय-दर्शन ही क्यों, विश्व के समग्र दर्शनों का जन्म इस दुःख एवं क्लेश में से ही तो हया है। मानव के वर्तमान दुःखाकूल जीवन से ही संसार के समग्र दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ है। इस तथ्य को कैसे भुलाया जा सकता है कि हमारे जीवन में दुःख एवं क्लेश नहीं है। यदि दुःख एवं क्लेश है, तो उससे छूटने का उपाय भी सोचना ही होगा। और यही सब कुछ तो अध्यात्मवादी-दर्शन ने किया है, फिर उसे निराशावादीदर्शन क्यों कहा जाता है ? निराशावादी तो वह तब होता, जबकि वह दुःख और क्लेश की बात तो करता, विलाप एवं रुदन तो करता, किन्तु उसे दूर करने का कोई उपाय न बतलाता । पर बात ऐसी नहीं है। अध्यात्मवादी-दर्शन ने यदि मानव-जीवन के दुःख एवं क्लेशों की ओर संकेत किया है, तो उसने वह मार्ग भी बतलाया है, जिस पर चलकर मनुष्य सर्व प्रकार के दुःखों से विमुक्त हो सकता है । और वह मार्ग है--त्याग, वैराग्य, अनासक्ति और अन्तर्जीवन का शोधन । ___ अध्यात्मवादी-दर्शन का कहना है--दुःख है, और दुःख का कारण है। दुःख अकारण नहीं है, क्योंकि जो अकारण होता है, उसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता। किंतु जिसका कारण होता है, यथावसर उसका निराकरण भी अवश्य ही किया जा सकता है। कल्पना कीजिए---किसी को दूध गरम करना है। तब क्या होगा? दूध को पात्र में डालकर अँगीठी पर रख देना होगा और उसके नीवे आग जला देनी होगी। कुछ काल बाद दूध गरम होगा, उसमें उबाल आ जाएगा। दूध का उबलना तब तक चालू रहेगा, जब तक कि उसके नीचे आग जल रही है। नीचे की प्राग भी जलती रहे और दूध का उबलना बन्द हो जाए, यह कैसे ७४ पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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