Book Title: Baldev Munini Sazzaya
Author(s): Rasila Kadia
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ 58 अनुसंधान-२३ वनमा पाछा फरे छे. आ समये वनमा लाकडां कापनार भक्तिभावपूर्वक पारणुं करावे छे. पासे उभेलो नील मृग आ निरखी रह्यो छे, एवामां झाडनी डाळी पडे छे अने तेनी नीचे कठियारो, मृग तथा मुनि दबाई जायचे. पुण्यनु भाथु लई तेओ पांचमा देवलोके पहोंचे छे. आठ कडीनी आ सज्झायमा आम बलदेवमुनिनुं जीवनवृत्तांत सुंदर रीते निरूपित थयुं छे. विभाग २ बलदेव महामुनि तप तपइ वनि, लेई संयमभार रे दारु-छेदक कबहइ को दीइ पारणइ लीइ आहार रे माई तुंगिआगिरि सिखरि सोहिइ ॥१॥ राम मुनि सुख कंद रे, वाघ मृग शशा सिंघ, चीतर बुझवइ पशुवृंद रे ॥२॥ तुंगि केई मृगपति हुया श्रावक, केइ अणसण लेइ रे, धरिय समकित मांस छांडि, जाति समरण केइ रे. ||३|| तुंगि रूप सुंदर अति पुरंदर, चाल्यउ नयर मझारि रे मास पारणे गोचरी जब, पेखिउ किनइ नारि रे ॥४॥ तुंगि कूप कंठई मदन मोही, नयन मषि ना लेइ रे. कुंभ चूकी पुत्र पास्या, कूया भीतरि देइ रे ॥५॥ तु० चतुर चिंतइ रूप मेरु, कामिनी मृग पासि रे, गोचरीकुं नयरि नाउं, भला मुज वनवास रे ॥६॥तु० मास पारणि आह(हा)र दइ तब, रथिक भगति विशाल रे हरिणला गुण नीला निरखइ, चंपिआ तरु डालि रे ॥७॥ तु० रथकार मृग बलदेव मुनिसुं, तब चल्या संबल लेई रे पंचमि सुरलोकि पोहता, सकल भवि सुख देई रे ॥८॥ तु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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