Book Title: Badhta Pradushan evam Paryavaraniya Shiksha Author(s): Hemlata Talsera Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 3
________________ 2005RSAJ.SUA 2 8006036060030899 0000000000000000000 RW- जन-मंगल धर्म के चार चरण 589 / खाँसी, जुकाम या तपेदिक। ऐसे रोगियों के साथ से अन्य रोग भी पर आत्मनिर्भरता की भावना उत्पन्न करके उन्हें जागरूक बनाया हो सकते हैं। खुजली, कोढ़ और अन्य त्वचा रोग भी इसी कोटि में जा सकता है। हर उम्र के लोगों के सरल शब्दों में समझाया जाये आते हैं। कि पर्यावरण हमारा वह वातावरण है, जिसका उपयोग हम अपनी घनी बस्तियों में रहने से मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। इस } प्रतिदिन की जिन्दगी में करते हैं; वह जमीन है, जिस पर हम रहते तनाव के कारण है-शोर भरा वातावरण, आराम करने के लिए हैं। पेड़, पहाड़, नदियाँ और समुद्र-यह सभी पर्यावरण के भाग ही समय की कमी, थके हुए स्नायुओं को राहत न मिलना आदि। है। पर्यावरण को स्वच्छ रखना, इस योग्य बनाना कि प्राणी मात्र भीड़-भड़के की जिन्दगी से बचने के लिए कई लोग घर से भाग इसमें स्वस्थ जीवन जी सके। यह हर व्यक्ति, बालक, महिला सभी Sanp जाते हैं और ज्यादातर समय घर से बाहर ही बिताते हैं। अनेक का दायित्त्व है। बार व्यक्ति के सामाजिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है, जैसे वायु प्रदूषण के बारे में भी हर वय वर्ग को स्पष्टीकरण किया 08 चिड़चिड़ा करने वाला रवैया, जल्दी क्रोधित होना, लड़ाई-झगड़ा जा सकता है। वायु में हम श्वांस लेते हैं और प्रदूषण से जिन्दगी करना आदि। गंदी बस्तियों के खराब हालत के मुख्य शिकार छोटे को खतरा हो सकता है। वायु प्रदूषण उद्योगों के जरिये होता है। बच्चे होते हैं, जो या तो अपने माता-पिता को उनके असामाजिक परिवहन के साधनों के धुएँ से वायु के स्वास्थ्यकर गुण समाप्त हो 10000 कुकृत्यों के कारण खो देते हैं अथवा स्वयं समाज से बहिष्कृत हो जाते हैं, जिनसे मानव को हानि पहुँचती है। वायु को स्वच्छ रखने जाते हैं। असामाजिक कार्यक्रम उन्हें आसानी से भटका देते हैं। लोग की दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता वृक्षों की है। जितने वृक्ष भीड़ युक्त इलाकों में रहने के कारण स्वच्छ हवा से वंचित रहते हैं। लगाये जायेंगे, उतनी ही हवा स्वच्छ होगी और उसमें प्राणदायी वे शक्ति की कमी महसूस करते हैं। इस कमी से उनके शारीरिक, तत्त्व बढ़ेंगे। वृक्ष न सिर्फ हमें लकड़ी देते हैं अथवा फल देते हैं, Peopp मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य में असंतुलन उत्पन्न होता है। बल्कि हवा में वे आवश्यक तत्त्व भी छोड़ेते हैं, जिनकी सहायता से saal भीड़ युक्त स्थल पर रहने से छूत की बीमारियाँ होती है। गंदे / पृथ्वी प्राणियों के योग्य रहती है। वातावरण में कीड़े, चूहे, खटमल और मक्खियाँ पनपती है। साथ वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल प्रदूषण के बारे में विस्तृत 3000 ही गंदे वातावरण से लोग आलसी भी हो जाते हैं। गंदगी, पानी, जानकारी भी हर उम्र के स्त्री-पुरुष, बालकों को देनी आवश्यक है। हवा और जमीन के प्राकृतिक गुणों का नाश करती है। घनी / उन्हें बताना चाहिए कि गंदा पानी पीने से अनेक बीमारियाँ फैलती बस्तियों में रहने वाले लोगों में असामाजिक व्यवहार पनपता है, हैं। पानी को शुद्ध करके पीना चाहिए। धोवन का अथवा उबला 2000 स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाली आदतों को बढ़ावा मिलता है और हुआ पानी भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। जीवन स्तर गिरता है। बालकों को पृथ्वी की सतह की देखभाल करने तथा उसका प्रदूषित वातावरण में बार-बार महामारियाँ आती हैं, छूत की संरक्षण उचित प्रकार से समझाया जाना चाहिए। उन्हें यह बताना बीमारियाँ फैलती है, जिससे मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी होती है। बीमारी आवश्यक है, कि पृथ्वी की सतह जिस पर अन्न पैदा होता है तथा तथा मृत्यु-दर की बढ़ोत्तरी से लोगों के दिलों में अपने स्वयं के जीवन के प्रति तथा बच्चों के जीवन के प्रति असुरक्षा उत्पन्न होती है। स्वास्थ्य की खराबी से लोग निम्न स्थितियों में जीने को बाध्य खण्ड फैलते जा रहे हैं। उपजाऊ धरती ऊसर होती जा रही है होते हैं-खेती लायक जमीन की कमी से अन्न की कमी होती है। पर्वतों की ढलाने, वृक्षों की कटाई के कारण मिट्टी को बहाकर, बालकों, महिलाओं और प्रौढ़ों को यदि पर्यावरण की शुद्धता पथरीली बना रही हैं। ऐसी स्थिति में हर व्यक्ति सजग नहीं होगा एवं अशुद्धता, उत्पादन पर इसका प्रभाव, पेड़ों का कटाव, उद्योग तो ऊसर भूमि का फैलाव कम नहीं किया जा सकेगा। उपजाऊ धन्धों पर पर्यावरण का प्रभाव, जनसंख्या और पर्यावरण का मिट्टी जमीन की ऊपरी सतह पर पानी और कीड़ों-पत्तों के गलने से बहन सम्बन्ध, ऑक्सीजन की कमी, यातायात के साधनों के धुएँ से बनती है। इस उपजाऊ मिट्टी को कायम रखने के लिए हम बहुत पर्यावरण पर दूषित प्रभाव, मानवीय अवशिष्ट, प्रदूषण आदि के कम उपाय करते हैं। जरूरत यह है, कि उचित उर्वरकों की बारे में जानकारी दी जा सकती है। शिक्षण या व्याख्यान के समय सहायता से हम पृथ्वी में से लिए गये तत्त्वों का संभरण करें और पर्यावरण से सम्बन्धित उदाहरण देकर विषय वस्तु का स्पष्टीकरण उसे पुनः कृषि योग्य बनाएँ। धरती के तत्त्वों का संरक्षण करने पर किया जा सकता है। हर उम्र के लोगों को स्वच्छ रहने हेतु प्रेरित ही यह हो सकेगा। किया जा सकता है, सफाई का महत्त्व समझाया जा सकता है। दी गई जानकारी बालक, युवा, महिलाएँ तथा वृद्ध सभी अपने रोगों की रोकथाम सम्बन्धी जानकारी दी जा सकती है तथा स्वयं / परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों तथा समाज के लोगों को बताएँ को अपने स्वास्थ्य की उचित प्रकार से संभाल करने हेतु जानकारी ताकि एक स्वस्थ और समृद्ध जीवन जीने की ओर आगे बढ़ा जा दी जा सकती है। बालकों तथा महिलाओं में पराश्रयता के स्थान | सके। 200000 DIDARDoormalayapra 2006.00 GRO OROSA HODACORPage Navigation
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