Book Title: Badhta Pradushan evam Paryavaraniya Shiksha Author(s): Hemlata Talsera Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 1
________________ Socesseslada P age जन-मंगल धर्म के चार चरण बढ़ता प्रदूषण एवं पर्यावरणीय शिक्षा -डॉ. हेमलता तलेसरा, रीडर शिक्षा (सेन्टर ऑफ एडवान्स स्टडीज इन एज्युकेशन, फेकल्टी आफ एज्युकेशन एण्ड साइकॉलाजी एम. एस. विश्व विद्यालय, बड़ोदरा (गुजरात)) सम्पूर्ण जड़ और चेतन पदार्थ जो हमारे चारों ओर दिखाई देते आणविक शक्ति के निरन्तर विकास एवं परीक्षण के कारण भी हैं या नहीं दिखाई देते हैं, उन सभी पदार्थों के सम्मिलित स्वरूप को प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इससे रेडियोधर्मिता बढ़ी है। इसका पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण का समस्त जीवों से गहरा सम्बन्ध अनुवांशिक प्रभाव पड़ता है, जो कि आगे चलकर मानव सभ्यता के होता है। यदि पर्यावरण शुद्ध होगा तो धरातल पर रहने वाले जीव विनाश का कारण हो सकता है। प्राकृतिक सभ्यता का विदोहन स्वस्थ होंगे और पर्यावरण प्रदूषित होगा तो प्राणी अनेक रोगों से करने से भी पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। वनों की कटाई ग्रसित होते रहेंगे। प्राणियों की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता घटती से अनेक समस्याएँ पैदा होने लगी है, क्योंकि वातावरण की शुद्धता जाएगी तथा विश्व विनाश के कगार पर पहुँच जाएगा। | बनाए रखने में वनस्पति महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। आज हमारा देश ही नहीं सारा विश्व पर्यावरण प्रदूषण के विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालयों के द्वारा प्रभाव से चिन्तित है। विश्व की प्रत्येक वस्तु किसी-न-किसी प्रकार । प्रदूषण से बचने के लिए अनेक उपाय कर रहा है। यह संगठन से प्रदूषित होती जा रही है। हवा, पानी और खाने के पदार्थ भी । पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली हानियों से सचेत कर रहा है। इसके प्रभाव से अछूते नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण मानवतावादी । संगठन द्वारा किया जाने वाला कार्य इस विशाल समस्या के लिए वैज्ञानिकों के लिए चुनौती का विषय बनता जा रहा है। निरन्तर नगण्य है। इसके लिए तो पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ जन बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगीकरण, शहरीकरण और प्राकृतिक आन्दोलन चलाया जाना चाहिए। जन-जन को इसकी विभीषिका का साधनों के तेजी से दोहन के कारण पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता जा | ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए हमारी आज की शिक्षा व्यवस्था को रहा है। इक्कीसवीं सदी के मध्य तक इस प्रदूषण से मानव जाति । पर्यावरण से सम्बन्धित करने की अत्यधिक आवश्यकता है। घुटने लगेगी। जल, थल और वायु पूर्ण रुप से दूषित हो जाएंगे। पर्यावरण शिक्षा को विद्यालयों में अनिवार्य विषय के रूप में लागू पर्यावरण प्रदूषण एक अनावश्यक परिवर्तन है। एक सर्वेक्षण करके छात्रों को प्रदूषण से बचने का ज्ञान देना चाहिए। हमारे के अनुसार वायु का प्रदूषण असीमित मात्रा में बढ़ने लगा है। ऋषि-मुनि यदि अपने व्याख्यान में पर्यावरण शिक्षा को जोड़े तो प्रतिवर्ष प्रदूषित वायु से अमेरिका में लगभग तैंतीस करोड़ डालर अधिक जनसमुदाय को सहज ही में पर्यावरण के बारे में जागरूक का अनाज नष्ट हो जाता है। भारतीय राष्ट्रीय पर्यावरण किया जा सकता है। इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान का कहना है, कि वर्षा के मौसम पर्यावरण शिक्षा को छोड़कर शेष महीनों में दिल्ली में सबसे अधिक वायु प्रदूषण । बालक चारों ओर से पर्यावरण से जुड़ा हुआ है, जिसमें वह रहता है और यही स्थिति बम्बई, कलकत्ता और कानपुर की है। जीता है, एक दूसरे को प्रभावित करता है और पर्यावरण साधनों प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव जलीय स्रोतों पर हो रहा है। पर आश्रित रहता है। जिसके बिना वह जी नहीं सकता है। छोटे-छोटे एवं बड़े उद्योगों से गन्दा पानी नालों से नदियों में पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध उस वातावरण से है, जिसमें बालक मिलकर पानी को दूषित कर रहा है। उस पानी में हैजा, डिप्थीरिया जीवित रहते हैं. सीखते हैं तथा काम करते हैं। काफी संख्या में आदि अन्यान्य रोगों के रोगाणु होते हैं। ये रोगाणु नदियों के पानी आज ऐसे लोग मिल जायेंगे जो गंदी, संकरी बस्तियों में लूंसे हुए को दूषित कर देते हैं। अनेक सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया है। है। ऐसी दशा में सबसे पहली आवश्यकता यह है, कि वे स्वस्थ, कि गंगा का पानी पूर्ण रूप से गन्दा हो चुका है। | सुखी व उत्तरदायित्वपूर्ण पारिवारिक जीवन जीने के उपाय सीखे। औद्योगिक संस्थानों में प्रयुक्त ईंधन (कोयला, तेल आदि) के रसूल (१९७९) ने पर्यावरण शिक्षा में इसके चार महत्त्वपूर्ण जलने से जहरीली गैस बनती है, जो हवा में बिखरकर सभी तक पक्षों को जोड़ने की बात कही है, जो इस प्रकार हैपहुँचती है। अधिक ताप के कारण नाइट्रोजन के ऑक्साइड भी बनते हैं। ये ऑक्साइड हाइड्रोकार्बन के साथ मिलकर एक जटिल १. भौतिक पर्यावरण-जल, वायु और भूमि। किन्तु हानिकारक फोटोकेमिकल ऑक्साइड बनाते है। ये रसायन २. जैविक पर्यावरण-पौधे और जन्तु। वायुमण्डल में स्थित कणों के साथ मिलकर धुन्ध का निर्माण करते ३. जनोपयोगी पर्यावरण-कृषि, उद्योग, वन, बस्ती, है, जो सूर्य की किरणों में गतिरुद्धता उत्पन्न करती है। यातायात, जल आपूर्ति, जल ऊर्जा और मनोरंजन। D 50000002DOOD DOORD0%a8%8Daco llegislatus Hos.30003 Dad IPATPAPESDD OIDPage Navigation
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