Book Title: Baccho me Charitra Nirman Disha aur Dayitva Author(s): Uday Jaroli Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 1
________________ बच्चों में चरित्र- निर्माण : दिशा और दायित्व 0 श्री उदय जारोली प्राचार्य, ज्ञान मन्दिर महाविद्यालय, नीमच (म० प्र०) बच्चों के चरित्र- निर्माण के बारे में बहुत कुछ कहा जाता रहा है। बड़े अपने चरित्र की बजाय बच्चों के चरित्र की चिन्ता कर-करके थके जा रहे हैं। मानों चरित्र-निर्माण इन बड़ों द्वारा पाठ पढ़ाये जाने से ही हो जाएगा। बड़े बड़े मजबूर हैं। बड़ों का कहना है कि कानून ऐसे हैं कि सब कानूनों का पूरा-पूरा पालन करें तो धन्धा-रोजगार नहीं चल सकता । व्यापारी कहता है, सारी हिसाब की किताबें सफेद रखें और सारे कर चुकाएँ तो बच्चे भूखों मर जाएँ । अफसर कहता है कि यदि रिश्वत नहीं ले तो गुजारा मुश्किल है, लड़की का ब्याह कैसे करें? उद्योगपति उत्पादन में, आयात-निर्यात में घोटाला नहीं करे, एक्साइज की चोरी नहीं करे, कारखाना इन्सपैक्टर को घूस न दे, राजनैतिक दलों को चुपके-चुपके चन्दे नहीं दे तो उसका उद्योग ठप्प हो जाए। ट्रक और बस वाला गाड़ी कितनी ही अपटूडेट क्यों न रखे आर०टी०ओ० और पुलिस वाले चालान बनाएँगे ही। उनके भी बाल-बच्चे जो हैं। तो जितनी बेईमानी, भ्रष्टाचार, रिश्वत-घूस, छल-कपट, कालाबाजारी, कर-चोरी होती है वह सब बाल-बच्चेदार बाल-बच्चों के नाम पर करते हैं। चरित्र का संकट, शायद, हर काल में रहा होगा तभी तो बार-बार महापुरुष जन्म लेते हैं, ईश्वर अवतरित होते हैं, भगवान-तीर्थकर तारने आते हैं, संसार का पाप मिटाते हैं । इस काल में भी चारित्रिक अध:पतन हो रहा है तो कुछ भौतिक सुखवाद का प्रभाव है और कुछ काल का भी प्रभाव मानना चाहिए फिर भी हमें सोचना है कि अवगुणों के स्थान पर चारित्रिक गुणों की प्रतिष्ठा हो और गुणवान की गरिमा और महिमा हो। हम सब बच्चों का चरित्र उच्च हो यह चाहते हैं, पर कौन-से बच्चों का ? बच्चों के चरित्र-निर्माण में मां क्या कर सकती है ? मजदूर और किसान माँ बच्चे को पीठ पर लादकर मजदूरी करती है। माँ सड़क या खेत में काम करती है और बच्चे एक किनारे पर बिलखते रहते हैं। ये ही बच्चे कुछ बड़े होकर गाय, बकरी, ढोर चरा लाते हैं। हजारों बच्चे फुटपाथों पर जन्म लेते हैं और वहीं जीवन पूरा कर लेते हैं। कहीं झुग्गी-झोंपड़ियों में पैदा होते हैं । स्टेशनों और बस-स्टेशनों के पास बने अनाधिकृत अड्डों पर जन्मते हैं। हम कौन से बच्चों के चरित्र-निर्माण की बात करें ? उन बच्चों का चरित्र-निर्माण कौन कर सकता है ? क्या माँ ? नहीं। उसके पास न तो देने के लिए दाना है और न ही कपड़ा है, और न ही शिक्षा है, न स्वस्थ रखने के लिये कोई साधन है। इनमें से अधिकांश बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं, और कुछ बूट पालिश करते हैं। कुछ अलग-अलग तरह से भीख माँगते हैं। कुछ चोरों-पाकेटमारों के जाल में फँसकर चोरी-पाकेटमारी करते हैं। बड़े होकर दादागीरी-गुण्डागीरी करते हैं। भीख मांगने वालों के बच्चे भी भीख माँगते हैं। छोटी लड़कियाँ शरीर दिखाकर भीख माँगती हैं। इन अभावग्रस्त-दुखियारे बच्चों के चरित्र-निर्माण की बात करना उन्हें शर्माना है। कुछ मध्यमवर्गीय, छोटे-मोटे किसान, बड़े और संगठित मजदूर, नौकरी पेशा और मझले व्यापारियों को - बच्चों के चरित्र निर्माण की चिन्ता कम और उनके धन्धे या नौकरी की चिन्ता अधिक रहती है। वे सोचते हैं, किसी भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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