Book Title: Baccho ka Charitra Nirman Author(s): Kumud Gupta Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 4
________________ बच्चों का चरित्र-निर्माण . ... . ........................... ..... ... .... . ... .. .....D evote का कथन है-'जीवन के अनुशासन सम्बन्धी नियम उसी प्रकार पढ़ाये तथा सिखाये जा सकते हैं, जैसे कि कोई भाषा।' व्यापार या राजनीति में इतनी सफलता प्रतिभा से नहीं मिलती, जितनी शील स्वभाव के कारण मिलती है / नियन्त्रण ही शक्ति है / वैसे भी हम देखते हैं, भाप को जब नियन्त्रित किया जाता है, तब वह कितनी बड़ी शक्ति बन जाती है। इसी प्रकार चरित्र की दृढ़ता जब अनुशासनबद्ध हो जाती है, तब वह महान् शक्ति बन जाती है। अतः बालक में आत्मसंयम जैसे गुणों द्वारा चरित्र का निर्माण किया जा सकता है। (7) कर्तव्यपालन की भावना-कर्तव्यपालन भी चरित्र-निर्माण का एक माध्यम बन सकता है / कर्तव्य एक ऋण है, जिसे प्रत्येक मनुष्य को चुकाना पड़ता है। जो मनुष्य चाहता है कि वह चारित्रिक दृष्टि से दिवालिया करार न कर दिया जाय, तो उसे अपने कर्तव्य का पालन अवश्य करना चाहिए। कर्त्तव्य के लिये समर्पित होने की भावना ही चरित्र का मुकुट है। कर्तव्य की प्रेरणा से प्रेरित मनुष्य कितना ही दुर्बल क्यों न हो, उसे अपने आत्मबल अर्थात् मनोबल को बुलंद रखना चाहिए। यदि मनोबल टूट गया तो फिर कर्तव्य का विवेक भी लुप्त हो जायेगा। अतः इस प्रकार का वातावरण निर्मित किया जावे, साथ ही ऐसी व्यावहारिक व नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जाय कि जिससे बच्चे का मनोबल दृढ़ हो तथा वह स्वतः ही अपने चरित्र का निर्माण करता चले। X X X X X X X X X X X X उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दविया जिणे / मायं च अज्जवभावेण, लोभ संतोसओ जिणे // -दशवकालिक 89 क्रोध को क्षमा से, मान को मृदुता से, माया (कपट) को सरलता से और लोभ को सन्तोष से जीतना चाहिए। X X X X X X X X X X X X Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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