Book Title: Baccho ka Charitra Nirman
Author(s): Kumud Gupta
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 3
________________ ७० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड . ... .... ........................................................... भी नहीं सीख पाता । बाल्यावस्था दर्पण के समान है। प्रथम हर्ष, प्रथम खेद, प्रथम सफलता, प्रथम असफलता आदि से ही जीवन के भविष्य का स्वरूप चित्रित होता है। बालक जो कुछ देखता है, उसका अनुकरण किये बिना नहीं रहता। व्यवहार, बर्ताव, चेष्टा, इंगित, गीत और भाषण का ढंग बालक अपने से बड़ों से ग्रहण करता है। यदि देखा जाय तो बालक की आदर्श मूर्ति उसकी माता और पिता होते हैं। माता की भूमिका उसके चरित्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण होती है । जार्ज हरबर्ट ने कहा है कि अच्छी माता सौ अध्यापकों से बढ़कर होती है । यह शिक्षा मौन होती है क्योंकि माता की क्रियाओं का प्रभाव बालक के हृदय पर पड़ता है। घर का चारित्रिक वातावरण माता पर आश्रित है। सुशीलता, दयालुता, चातुर्य, कार्यकुशलता, प्रसन्नता, सन्तोष आदि जो चरित्र के आवश्यक गुण हैं, माता से ही प्राप्त होते हैं । धैर्य व आत्म-संयम के पाठ की व्यावहारिक शिक्षा घर पर ही मिलती है। (२) शिक्षा-वास्तविक स्थिति में शिक्षा का ध्येय चरित्र-निर्माण है। क्योंकि शिक्षा मनुष्य को जीवन की परिस्थितियों से जूझने के लिए तैयार करती है। शिक्षा मानवता के लिए आवश्यक बिन्दु है। शिक्षा केवल मनुष्य में ज्ञानदान नहीं करती है वह संस्कार और सुरुचि को भी विकसित करती है। महात्मा गांधी ने कहा भी है कि सदाचार और निर्मल जीवन ही सच्ची शिक्षा का आधार है। (६) अच्छी संगति-जार्ज हर्बर्ट ने कहा था-अच्छे लोगों की संगति करो, तुम भी उन जैसे बन जाओगे। चरित्र-निर्माण में घर के बाद पाठशाला का स्थान है। वहाँ मित्रों और साथियों की संगति पाने का अवसर बालक को मिलता है । जैसा हम भोजन करते हैं, वैसा ही प्रभाव शरीर पर पड़ता है, उसी प्रकार जैसी हमें संगति व शिक्षा मिलेगी वैसी हमारी मानस-आत्मा बनेगी। मित्रों के आचार, विचार, इंगित, चेष्टा, भाषण आदि चरित्र-निर्माण में सहायक बनते हैं। दृष्टान्त या उदाहरण मानव-जाति की पाठशाला है। लॉक ने कहा है, चरित्र-अनुशासन की शिक्षा का सर्वोत्तम लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह मनुष्य के मन को ऐसी शक्ति दे, जिससे मनुष्य आदत के शासन पर विजय पा सके। उत्साही और बुद्धिमान व्यक्ति की संगति का मनुष्य के चरित्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। एक उत्तम चरित्र वाला व्यक्ति, चाहे वह किसी भी कारखाने में काम करता हो, अपने साथियों में उदारता व सत्यता के भाव भरने का प्रयत्न कर सकता है। उत्तम चरित्र सुगन्ध की तरह है, लोग उसका अनुकरण करते हैं। चारित्रिक शक्ति का सबसे पहला हथियार है सहानुभूति । अच्छा जीवन-चरित्र एक अच्छा जीवन-साथी है। (४) कर्म द्वारा चरित्र-निर्माण-संसार कर्म (क्रियाशीलता) प्रधान है। अत: चरित्र-निर्माण में कर्म का महत्त्वपूर्ण योगदान है । कर्म के द्वारा मनुष्य को अनुशासन, आत्म-निग्रह, एकाग्रता, प्रयोग, व्यावहारिकता, धैर्य और कार्य-निपुणता की शिक्षा मिलती है । सभ्यता का विकास कर्म पर आधारित है। आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है । कर्म जीवन को अनुशासित करता है । कर्म मनुष्य का वास्तविक शिक्षक है । पेशे, धन्धे पद, व्यवहार, व्यापार, व्यवसाय में प्रशिक्षण प्राप्त करने से मनुष्य की क्षमतायें विकसित होती हैं। (५) चारित्रिक साहस-साहस द्वारा ही किसी मनुष्य का चरित्र महान् बनता है। साहस के द्वारा ही सत्य की खोज, सत्य-भाषण, लालसाओं को रोकने की शक्ति आदि का विकास होता है। सुकरात को उच्च विचारों के लिए विष का प्याला पीना पड़ा। (६) आत्म-संयम-आत्म-संयम सब गुणों की नींव है । जब मनुष्य अपनी इच्छा व लालसा का दास बन जाता है तो वह अपनी चारित्रिक स्वतन्त्रता को खो बैठता है और जीवन की धारा असहाय होकर बहने लगती है। अनुशासन जितना पूर्ण होगा, चरित्र उतना ही ऊँचा होगा। चरित्र अनुशासन का सर्वोत्तम द्वार. है । एक योग्य अध्यापक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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