Book Title: Avantisukumal Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit
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________________ अवंती नंदो विषादांतो / मरगांता जनिर्ध // 2 // वज्रकायशरीरागा-मर्हतां यद्यनित्यता // कदलीसारतुल्येषु।। দৃষিg का कथा शेषजंतुषु // 3 // उत्पत्तिरत्रास्ति विपत्तिसंयुता / न कोऽप्युपायोऽस्त्यमृतौ शरीरिणां सर्वे क्षिते वाध्वनि सर्वदावहे / ध्रुः शुचा किं सुकृतं विधीयते // 4 / रुदता कुत एव सा पुन-न शुचा // 11 // नानुमृतापि लभ्यते // परलोकजुषां स्वकर्मभिर्गतयो भिन्नपथा हि देहीनां // 5 // सदा सदाचारपरायणात्मनां / विवेकधाराशतधौतचेतसां // जिनोदितं पंडितमृत्युमीयुषां / न जातु शोच्यं महतां महीतले // 6 // अर्हद्भक्तिमतां गुरुस्मृतिजुषां क्रोधादिशत्रुद्विषां / शक्त्या पंचनमस्कृतिं च जपतामाज्ञाविधि तन्वतां // इत्थं सिद्धिनिबंधनोद्यतधियां पुंसां यशःशालिनां / श्लाघ्यो मृत्युरपि प्रणष्टरजसां पर्यंतकालागतः // 7 // गुरुमुखादित्याद्युपदेशं श्रुत्वा शोकं परिहत्य ते सर्वेऽपि गृहमध्ये प्राप्ताः. अथ यत्र स्थाने सोऽवंतीसुकुमालो देहं त्यक्त्वा स्वर्गे गतस्तत्र स्थाने तस्य मातापितृभ्यां महाफालाभिधो जिनप्रासादः / कारितः, तत्र श्चीपार्श्वनाथप्रतिमा ताभ्यां स्थापिता. ततस्तस्य ताः सर्वा अपि प्रिया गुरोः पावें दीक्षा Kजगृहुः. // इति श्रीअवंतीसुकुमालचरित्रं समाप्तं // श्रीरस्तु //

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