Book Title: Atmanand Prakash Pustak 091 Ank 06
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आत्मानंद प्रकाश ] था । घलस्वरूप पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज के स्वर्गवास के बीस दिन के बाद ही उनकी पुण्य स्मृति में 'श्री जैन आत्मानंद सभा' की स्थापना हुई । सर्व प्रथम इस सभा का उद्घाटन पूज्य मुनि श्री गंभीर विजयजी म. की तारक निश्रा में एक भव्य शोभायात्रा पूर्वक शहर के एक किराए के मकान में दि. १३-६-१८९६ के दिन हुआ था। सभा के इस उद्घाटन समारोह में विश्व विख्यात विद्वान श्री बीरचंद राघवजी गांधी भी उपस्थित हुए थे । श्री जैन आत्मानंद सभा का प्रमुख उद्देश ज्ञान का प्रचार और प्रसार था । इसके अन्तर्गत सामूहिक अध्ययन, संस्कृत भाषा क्लस, वक्तृत्व शिक्षा, पुस्तकालय और ग्रन्थ प्रकाशन आदि विविध प्रवृत्तियां प्रारंभ हुई। धीरे धीरे सभा का विकास होता गया । कुछ व्यक्तियों को इसका संरक्षक बनाया गया । कुछ को वार्षिक और कुछ को आजीवन सदस्य बनाया गया । वि. सं. १९६३ श्री जैन आत्मानंद सभा ने शहर के मध्य में अपना स्वयं का भव्य भवन निर्मित किया । इस निर्माण के साथ ही यह जैन साहित्य का प्रमुख केन्द्र बन गया । इस सभा को अनेक आचार्य भगतों का आशीर्वाद प्राप्त एवं मुनि हुआ हैं । जिन में प्रमुख है १ भुनि श्री गंभीरविजयजी म. २ पंजाब केसरी, युगवीर आचार्य श्रीमद् निजय वल्लभसूरीश्वरजी म. प्रवर्तक मुनि श्री कांतिविजयजी म. मुनि श्री हंस विजयजी म. मुनि श्री चतुरविजयजी म. मुनि श्री संपतविजयजी म. ३ ४ ५ ६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगम प्रभाकर मुनि श्री पुष्पवियजी म. मुनि श्री भक्तिविजयजी म. मुनि श्री जम्बूविजयजी म. आदि । इस सभा के पुस्तकालय विभाग में ( क ) दुर्लभ आगम ग्रन्थ (ख) प्राकृत और संस्कृत के ग्रन्थ (ग) हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती के ग्रन्थ (घ) वैदिक ग्रन्थ (ड) हस्तलिखित प्रते (च) शिल्प शास्त्र के ग्रन्थ आदि फुल मिलाकर प्राचीन और अर्वाचीन २५,००० ( पच्चीस हजार ) पुस्तकें है । ८ ९ हस्तलिखित दुर्लभ ग्रन्थों की सुरक्षा के लिए लोहे की अलमारियां और लकडी की पेटियां है जिन में प्रत्येक प्रत को कपडे में लपेट कर सुरक्षित किया गया 1 सभा ने आज तक हजारों पुस्त के विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रकाशित की हैं । कई ग्रन्थों के अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं । आज तक यह प्रकाशन कार्य अविराम चल For Private And Personal Use Only

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