Book Title: Atmanand Prakash Pustak 052 Ank 02 03
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " जीवनभर श्रेष्ठ कार्य करते करते वह चले गये।" " समाज सुधार और शिक्षण को महत्व देनेवाली और उस वास्ते सदैव प्रयत्नशील रहनेवाली उनकी जैसी विभूतिआँ साधु संप्रदाय में क्वचित ही मीलगी।" "जग जग बड़ी बड़ी शिक्षण संस्था स्थापन करके जैन समाज के मध्यम बर्गमें शिक्षण का प्रचार करने के वास्ते उनोने बहोत परिश्रम उठाया है .यह बात सब कोई जानते हैं। सांप्रदायिक हो कर भी संप्रदाय का अभिमान न रख कर सब के प्रति के समभाव रखते थे।" “इस वास्ते ही जैन और जैनेतर के मन में उनके प्रति आदर और पूज्यभाव था और ईसी कारण उनके जाने से उनको जाननेवाले हरेक व्यक्ति के मन में दुःख का भाव उत्पन्न हुआ है।" "जीवनभर श्रेष्ठ कार्य करते करते वह हमारे में से चले गये है । सब को इसका दुःख लगना स्वाभाविक है, तो भी इस समय हमे उनके पवित्र जीवन का और उपदेश का स्मरण करके उनके अपूर्ण कार्य को पूरा करने के वास्ते प्रयत्नशील रहने का निश्चय करना चाहीये ।" ____ " इनके प्रति हमारे मन में आदर और सद्भाव हो उनके पीछे हमारा ये ही कर्तव्य हो जाता है और इस प्रकार का निश्चय ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धाञ्जलि है।" -श्री केदारनाथजी एकता के हामी थे। आज का युग समन्वय धार्मिक सहिष्णुता का युग है। इसके अनुकूल चलना व वैसा ही वातावरण बनाना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है । आचार्य श्री विजयवल्लभसूरिजी समन्वय, सद्भावना और एकता के हामी थे। उन जैसी जैनों की एकता की भावना और प्रयत्न अन्यत्र कम देखने में आता है। पिछले कुछ समय से वे उसके लिये अहर्निश प्रयत्नशील रहे । मेरी उनसे मुलाकात हुई और आधे घन्टा तक उनसे सौहार्दपूर्ण वार्तालाप चला कि जैन एकता के लिए उनके हृदय में तड़प है। उनकी यह समन्वयमूलक भावना मेरे हृदय में और ज्यादा गहरी बनी और उनके प्रति मेरी जो आदर की भावना थी उसमें वृद्धि हुई ! जो समन्वय व नैतिक उत्थान मूलक कार्यक्रम हमारी तरफ से वर्तमान में चले रहे है, उनकी भी वैसे कार्यों में रुचि थी। जैन दर्शन और धर्म की प्रति उनकी भावना प्रगाढ़ गौरवपूर्ण थी। ___ यद्यपि आज उनका स्थूल शरीर यहाँ पर विद्यमान नहीं है लेकिन जनता को उनसे जो एकता और समन्वय की भावना मिली है वह मिटनेवाली नहीं है। उनका कार्य समन्वय और सद्भावना का था । मुझे आशा है कि उनके शिष्य व अनुयायी उनकी इस भावना को सफल बनाने व आगे बढ़ाने में प्रयत्नशील रहेंगे। -आचार्यश्री तुलसी [ ५८ ] For Private And Personal Use Only

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