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श्री कुमारपालभूपालप्रतिबोधक कलिकालसर्वज्ञ १००८ श्री श्रीमद् हेमचंद्राचार्य स्तुति
( तरज ) गाम भोयणीवाले तुमको लाखों प्रणाम,
गाम धंधूकाबाले तुमको वंदन वार हजार, तुमको वंदन वार हजार कारतक पुनम जन्म को पाया, मात पिताका मन हर्षाया । चंग नार शुभ धार, तुमको वंदन वार हजार ॥१॥ पांचवां वर्ष चंगको आवे, देवचंद्रसूरि वहां जावे । देखे बालक धार, तुमको वंदन चार हजार २॥ सुंदर कंचन रूप सुहाया, नरनारी सबके मन भाया। गुरुको दिया उपहार, तुमको वंदन वार हजार ॥३॥ देवचंद्रसूरि संजमदाता, स्तंभन तीर्थ संघ गुण गाता। नाम सोमचंद सार, तुमको वंदन वार हजार ॥४॥ विद्यावान गंभीर अपारा, योग्य जान सरिपद धारा। हेम नाम सुखकार, तुमको वंदन वार हजार ॥५॥ हेमचंद्र गुरुराज हमारे, नर नरपति सब दास तुमारे । कीना वह उपकार, तुमको वंदन वार हजार ॥६॥ कुमारपाल जिनधर्मी बनाया, कलिकालसर्वज्ञ कहाया । जगजीवन आधार, तुमको वंदन वार हजार ॥७॥ अद्भुत साहित्य रचना करके, जैन जगत को ऊंचा धरके । लिया सब से सहकार, तुमको वंदन वार हजार ॥८॥ वल्लभसूरिकी शरणे जाके, सोहन गुरुके नित गुण गाके । समुद्र वदे जयकार, तुम को वंदन वार हजार ॥९॥ आचार्यमहाराज श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजीके प्रशिष्य
पं. समुद्रविजयजी
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