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શ્રીમદ્ વિજયાનંદસૂરિની યંતી. मजी महाराजना स्वर्गगमन संबंधी गायन मधुर अने वैराग्य जनक रागयी गाइ बताव्यु हतुं. बाद श्रावक वर्गे सारंगी आदि साथ जयंती संबंधी पदो मायां हता. बाद मुनिराजश्री हंसविजयजी महाराजे जयंती संबंधी हिंदि जापामां नाषण आप्यु हतुं जे नीचे मुजब हतुं.
श्री शीतलनाथाय नमः आद्येन हीनं जनधावदृष्टं मध्येन हीनं नुविवर्णनीयम्म अन्तेन हीनं धुनुते शरीरं तन्नामकं तीर्थपतिं नमामि ।। ___ महाशयो ! आजरोज जीस कारणसे आपण इहापर एकत्र हुवेहै सोतो आपके जाणनेमें आया हिहोगा तथापि इस बातसें जो अननिझहे ननोके जाणनेके लिये कुछ कहना चाहीये इसलिये में निवेदन करताहुँकि!!! .
___ सज्जनो आजके शुन प्रसंगमें अपण इहोपर तपाच्छाधिराज मरहुम श्री विजयानंदसुरीश्वरजी उर्फे श्री आत्मारामजी महाराजकी जयंती करनेको नप. स्थित हुवेहै.
सुजनो अब इस जयंतीका क्या उद्देश हे सोनी साथसाथ दिखनानेकी आवश्यकता हे इसलिये में निवेदन करता हुं की महात्माके गुणानुवाद करके इनोके पगले पगले चननेका प्रयत्न करना और नच्च जोवन गानना एहि इस जयंतीका आशय है. जीस जीस देशमें पराक्रमी पुरुषोकी पूजा नही होती जीस देशमें महात्माके कीर्तिगान होते नही जीस देशमें बच्चोंके सुकमान मगजमें प्रनाविक पुरुषोकी जीवनरेखा अंकित होती नही वोह देश जन्नतिके शिखरपर कैसे चढ शक्ताहै ! इसलिये वीर पुरुषोकी विरुदावनिका रिवाज प्राचीन कालसेहि चला आताहे.
सन्मित्रो-जयंती कीसकी होनी चाहिये सोभी लक्ष्य परखेने योग्य है. इसलिये में प्रदशीत करता हूंकी जीनोने पवित्र जीवन व्यतित की हो जन समाजको नैतिक धार्मिक और आत्मिक उन्नतके अग्रपर चढानेको श्रम उगयाहो ऐसे महात्माके यशोगान गाकर इनोके सद्गुणोकुं ग्रहणकरनेकेलिये इनकी जयंती करनी उचितहै अब जयंती कैसे करना यह बातनी सोपयोगी है, इसलिये प्रतिपादन कीया जाताहेकी विद्याका प्रचार जब बढता जाताहे इस समयमें केवल जय जयकरके बेच रहेना इस्सें जयंतीका उच्च हेतु साफल्य
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