Book Title: Atm Vaibhav ke Vikas Hetu Prarthana Author(s): Dhanraj Chaudhary Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 4
________________ * प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. कहीं यह भूल न पड़े कि मैं बड़ा ज्ञानी हूँ, बड़ा साधक हूँ, धनी हूँ, पदाधिकारी हूँ, अहंकार के ऐसे भाव हैं तो वे तूली के मसाले को गीला-नम करते हैं और तब हमारी मनोदशा परमात्मा के साथ वांछित शक्ति से रगड़ न खा पायेगी ताकि अन्दर की ज्योति प्रगट हो जाय। यहाँ पीपाजी महाराज के एक पद को उद्धृत करना उचित जान पड़ता है जिसमें बाहरी प्रयत्नों को छोड़कर अपने अंदर की यात्रा के लिए साधक को उकसाया गया है कायउ देवा काइअउ देवल, काइअउ जंगम जाती, काइअउ धूप दीप नइबेधा, काइअउ पूजा पाती। काइया बहुखण्ड खोजते, नवनिधि पाई, जो ब्रह्माण्डे सोई पिण्डे जो खोजे सो पावै, पीपा प्रणवै परम ततु है, सद्गुरु होई लखावै / काया के अन्दर ही सच्चा देवता है, काया में ही हरि का निवास है, काया ही सच्चा यात्री है, काया ही धूप, दीप और प्रसाद है और काया में ही सच्चे फूल और पत्ते हैं। जिस वस्तु को जगह-जगह ढूंढ़ते हैं वह काया के अन्दर मिलती है। जो अजर अविनाशी तत्त्व आवागमन से ऊपर है, वह भी काया के भीतर है। जो कुछ सारी सृष्टि में है वह सब कुछ काया के अन्दर भी है। पीपाजी कहते हैं परमात्मा ही असल सार वस्तु है। वह सार वस्तु सबके अंतर में विद्यमान है। पूरा सतगुरु मिल जाय तो वह उस वस्तु को अंदर ही दिखा देता है। "प्राथना का अद्भुत आकर्षण" नाम अध्याय सोये हुए को जगाता ही नहीं बल्कि ऊर्जा से छलाछल भर देता है। आचार्य प्रवर वह गुर प्रदान करते हैं जिससे कि आत्मिक ऊष्मा रूबरू प्रकट हो जाय। किस प्रकार की प्रार्थना की जाय कि वह कारगर हो ? निश्चय ही पहले तो बुहारी लगानी होगी कि साधक का अंतःकरण शांत, स्वच्छ और इन्द्रियाँ अपने बस में आ जायं / आचार्य श्री इस तैयारी के बाद प्रार्थी को सोदाहरण बताते हैं कि प्रार्थना में मांग हो तो भी कैसी ? उदाहरण हैं मानतुंग आचार्य का निवेदन और चंदनबाला सती का द्रवित हो उठना / 'भक्तामर स्तोत्र' में, आयो मुझे बचाओ या मेरी जंजीरें काटो सी मांग नहीं है / तलघर से निकाली गई तीये के पारणे से पूर्व की चन्दनबाला सती के हाथ में दान देने के लिए बाकले हैं, उत्तम पात्र द्वार आये भी मगर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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