Book Title: Atm Vaibhav ke Vikas Hetu Prarthana Author(s): Dhanraj Chaudhary Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 3
________________ • १६२ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व के लिए सजातीय पदार्थ परमात्मा है और जड़ वस्तुएँ विजातीय हैं जो विष की भाँति हैं। सजातीय से मिलाप ही स्वाभाविक और स्थायी हो सकता है, इस हेतु महाराज साहव फरमाते हैं, "हमारी प्रार्थना का ध्येय है—जिन्होंने अज्ञान का आवरण छिन्न-भिन्न कर दिया है, मोह के तमस को हटा दिया है, अतएव जो वीतरागता और सर्वज्ञता की स्थिति पर पहुँचे हुए हैं, जिन्हें अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त बल, अनन्त शांति प्राप्त हुई है, अनन्त सुख-सम्पत्ति का भण्डार जिनके लिए खुल गया है, उस परमात्मा के साण रगड़ खाना और इससे प्राशय है अपने अंतर की ज्योति जगाना" । ___ श्री तुलसी साहब की कुछ पंक्तियों का यहाँ याद आ जाना उपयुक्त ही जान पड़ता है जग जग कहते जुग भये, जगा न एको बार । जगा न एको बार, सार कहो कैसे पावे ।। सोबत जुग जुग भये। संत बिन कौन जगावे । पड़े भरम के मांहि, बंद से कौन छुड़ावे ।। वस्तुतः साधक की नींद टूट भी जाय तो अपराध बोध के मारे सांस घुट घुट जाती है-मुझ में तो काम, क्रोध, मद, माया, मान, मोह आदि दोष भरे हुए हैं। मैं उस शिव स्वरूप सिद्ध स्वरूप से रगड़ कैसे खाऊँ ? व्यावहारिकता के इस सशोपंज की स्थिति से घिरे हुए को महाराज सा० की आश्वस्ति है"भाई, बात तुम्हारी सच्ची है, मैं अशुद्ध हँ, कलंकित हूँ, कल्मषग्रस्त हैं, मगर यह भी सत्य है कि ऐसा होने के कारण ही यह प्रार्थना कर रहा हूँ। अशुद्ध न होता तो शुद्ध होने की प्रार्थना क्यों करता? जो शुद्ध है, बुद्ध है, पूर्ण है उसे प्रार्थना दरकार ही नहीं होती।" निश्चय ही यहाँ प्रार्थी बड़े सुख का अनुभव करता है। होने की भावना उसमें उग आई कि प्रार्थना औषधि तो बनी ही मुझ रोगी के लिए है। दर्पण की भांति स्वच्छ हुअा प्रार्थी अब मानो हाथ जोड़े खड़ा है। पूछता हुआभगवन् ! कृपा कर यह भी बता दीजिये कि प्रार्थना में करना क्या होता है ? साफ सुथरी जिज्ञासा का सटीक ही समाधान उपलब्ध है प्रवचन में-'हमें किसी भाँति का दुराव-छिपाव न रखकर अपने चित्त को परमात्मा के विराट स्वरूप में तल्लीन कर देना है। किसी अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है । हमें तो परमात्मा के स्वरूप के साथ मिलकर चलना है" दिल का हजरा साफ कर, जानां के आने के लिए। ध्यान गैरों का उठा, उसको बिठाने के लिए ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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