Book Title: Atm Sadhna aur Acharya Hastimalji
Author(s): Premchand Ranvaka
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 1
________________ आत्म-साधना और प्राचार्य श्री - डॉ० प्रेमचन्द रांवका भारतीय प्रात्म साधक मनीषियों ने अपनी उत्कट त्याग, तपस्या एवं साधना से प्रसूत अनुभवों से यह सिद्ध किया है नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा । कवित्वं दुर्लभं लोके, मुक्तिस्तत्र सुदुर्लभा । इस संसार में प्रथम तो नर-जन्म पाना ही दुर्लभ है और यदि किन्हीं सुकृतों से नर-भव पा भी लिया तो विद्या प्राप्ति और भी दुर्लभ है, यदि विद्वान् भी बन गये तो काव्य-सृजन दुर्लभ है, यदि ऐसा भी हो जाय तो इस संसार से आवागमन से सदा-सदा के लिये मुक्ति प्राप्त करना तो अत्यन्त ही दुर्लभ है । यह सुनिश्चित है कि ८४ लाख योनियों में भटकते-भटकते मानव जीवन की प्राप्ति उसी प्रकार दुर्लभ है, जिस प्रकार चौराहे पर/राजमार्ग पर स्वर्ण राशि का मिलना अत्यन्त कठिन है। इसीलिये संत भक्त कवयित्री मीरा ने गाया-'का जाणूं कुछ पुण्य प्रगटा मानुषा अवतार ।' परन्तु उसका अर्थ यह नहीं कि दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति के लिये क्यों प्रयत्न किया जावे-प्रयत्न तो दुर्लभ वस्तु के लिये ही होता है। . हमें किन्हीं पूर्वोदय पुण्य कर्मों से मानव जीवन मिला है तो इस जीवन के प्रति पल-प्रतिक्षण का सदुपयोग आवश्यक है। क्योंकि मानव जीवन ही अन्य सब गतियों से श्रेष्ठ है-पाहार, निद्रा, भय, मैथुन ये क्रियाएँ तो मनुष्य और पशु दोनों करते हैं, परन्तु आत्म-साधना परम धर्म ही ऐसा है जो मानव को प्रभु से भिन्न करता है। इस दुर्लभ मानव जन्म को प्राप्त करने के लिये देवता भी लालायित रहते हैं। क्योंकि इस जीवन के माध्यम से ही तप, त्याग द्वारा अचल सौख्य धाम प्राप्त किया जा सकता है। इसलिये 'छह ढाला' के रचयिता कविवर श्री दौलतरामजी कहते हैं "दौल समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवे । यह नर भव फिर मिलत कठिन है. सो सम्यक्मती होवे ।।": Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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