Book Title: Ashtapahud
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ २८५ २८५ २८६ ३०७ ३१० विषय मोक्षमार्ग में च्युत कौन ? मोक्षमार्गी मुनि कैसे होते हैं ? मोक्षप्रापक भावना फिर मोक्षमार्गी कैसे निश्चयात्मक ध्यान का लक्षण तथा फल पापरहित कैसा योगी होता है श्रावकों का प्रधान कर्तव्य निश्चलसम्यक्त्व प्राप्ति तथा उसका ध्यान और ध्यान का फल जो सम्यक्त्व को मलिन नहीं करते वे कैसे कहे जाते हैं सम्यक्त्व का लक्षण सम्यक्त्व किसके है मिथ्यादृष्टि का लक्षण मिथ्या की मान्यता सम्यग्दृष्टि के नहीं तथा दोनों का परस्पर विपरीत धर्म कैसा हुआ मिथ्यादृष्टि संसार में भ्रमता है मिथ्यात्वी लिंगी की निरर्थकता जिनलिंग का विरोधक कौन ? आत्मस्वभाव से विपरीत का सभी व्यर्थ है ऐसा साधु मोक्ष की प्राप्ति करता है देहस्थ आत्मा कैसा जानने योग्य है पंचपरमेष्ठी आत्मा में ही हैं अत: वही शरण हैं चारों आराधना आत्मा ही में हैं अत: वही शरण है मोक्षपाहुड पढ़ने-सुनने का फल टीकाकारकृत मोक्षपाहुड का साररूपकथन ग्रंथ के अलावा टीकाकारकृत पंच नमस्कार मंत्र विषयक विशेष वर्णन पृष्ठ | विषय पृष्ठ २८२ ७. लिंगपाहुड २८४ अरहंतों को नमस्कार पूर्वक लिंग पाहुड बनाने २८४ की प्रतिज्ञा ३०६ भावधर्म ही वास्तविक लिंग प्रधान है ३०७ पापमोहित दुर्बुद्धि नारद के समान लिंग की हँसी कराते हैं लिंग धारण कर कुक्रिया करते हैं, वे तिर्यंच हैं ३०८ २८७ ऐसा तिर्यंच योनि है मुनि नहीं ३०९ लिंगरूप में खोटी क्रिया करनेवाला नरकगामी है ३०९ लिंगरूप में अब्रह्म का सेवनेवाला संसार में भ्रमण करता है कौन सा लिंगी अनंत संसारी है ३१० किस कर्म का नाश करनेवाला लिंगी नरकगामी है फिर कैसा हुआ तिर्यंच योनि है कैसा जिनमार्गी श्रमण नहीं हो सकता चोर के समान कौन सा मुनि कहा जाता है ३१४ २९४ लिंगरूप में कैसी क्रियायें तिर्यंचता की द्योतक हैं ३१५ २९५ भावरहित श्रमण नहीं है ३१६ स्त्रियों का संसर्ग विशेष रखनेवाला श्रमण नहीं पार्श्वस्थ से भी गिरा है २९८ पुंश्चली के घर भोजन तथा उसकी प्रशंसा करनेवाला ज्ञान भाव रहित है श्रमण नहीं लिंगपाहुड धारण करने का तथा उसका फल ३१८ २९९ ८. शीलपाहुड महावीर स्वामी को नमस्कार और शीलपाहुड ३०२ | लिखने की प्रतिज्ञा (३४) ३११ २९२ २९३ mmmm W २९७ २९९ २९९ ३२०

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