Book Title: Ashtapahud
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 10
________________ पृष्ठ २६७ २६७ 07 २७१ २७२ २५५ २७४ विषय इसमें दृष्टान्त स्वर्गमोक्ष के कारण परमात्मस्वरूप प्राप्ति के कारण और उस विषय का दृष्टान्त दृष्टान्त द्वारा श्रेष्ठ अश्रेष्ठ का वर्णन आत्मध्यान की विधि ध्यानावस्था में मौन का हेतूपूर्वक कथन योगी का कार्य कौन कहाँ सोता तथा जागता है ज्ञानी योगी का कर्तव्य ध्यान अध्ययन का उपदेश आराधक तथा आराधना की विधि के फल का कथन आत्मा कैसा है योगी को रत्नत्रय की आराधना से क्या होता है ? आत्मा में रत्नत्रय का सद्भाव कैसे प्रकारान्तर से रत्नत्रय का कथन सम्यग्दर्शन का प्राधान्य सम्यग्ज्ञान का स्वरूप सम्यक्चारित्र का लक्षण परमपद को प्राप्त करनेवाला कैसा हुआ होता है कैसा हुआ आत्मा का ध्यान करता है कैसा हुआ उत्तम सुख को प्राप्त करता है कैसा हुआ मोक्षसुख को प्राप्त नहीं करता जिनमुद्रा क्या है ? परमात्मा के ध्यान से योगी के क्या विशेषता होती है पृष्ठ | विषय २४९ चारित्रविषयक विशेष कथन २५० जीव के विशुद्ध अशुद्ध कथन में दृष्टान्त सम्यत्वसहित सरागी योगी कैसा २६८ २५० कर्मक्षय की अपेक्षा अज्ञानी तपस्वी से ज्ञानी तपस्वी में विशेषता २६८ अज्ञानी ज्ञानी का लक्षण २६९ २५४ | ऐसे लिंगग्रहण से क्या सुख | सांख्यादि अज्ञानी क्यों तथा जैन में २५५ | ज्ञानित्व किस कारण से ज्ञानतप की संयुक्तता मोक्ष की साधक है २५६ पृथक्-पृथक् नहीं २७२ स्वरूपाचरणचारित्र से भ्रष्ट कौन २७३ २५७ ज्ञानभावना कैसी कार्यकारी है २५८ | किनको जीतकर निज आत्मा का ध्यान करना। २७५ ध्येय आत्मा कैसा २५८ उत्तरोत्तर दुर्लभता से किनकी प्राप्ति होती है २७५ जबतक विषयों में प्रवृत्ति है तबतक २५९ आत्मज्ञान नहीं २७६ कैसा हुआ संसार में भ्रमण करता है २७६ २६० चतुर्गति का नाश कौन करते हैं ? २७६ २६२ अज्ञानी विषयक विशेष कथन २७७ वास्तविक मोक्षप्राप्ति कौन करते हैं ? २७८ २६३ | कैसा राग संसार का कारण है २६३ समभाव से चारित्र ध्यान योग के समय के निषेधक कैसे हैं २८० पंचमकाल में धर्म ध्यान नहीं मानते हैं, वे २६५ अज्ञानी हैं २८१ इस समय भी रत्नत्रय-शुद्धिपूर्वक आत्मध्यान २६६ | इंद्रादि फल का दाता है (३३) २७५ २५८ २५९ २७९ २७९ २८२ २८२

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